Halari Breed Donkey Milk: वैसे तो गधी का दूध काफी फायदेमंद माना जाता है लेकिन भारत में एक दुर्लभ किस्म की गधी है जो शायद सबसे रेयर है. गुजरात के हालार क्षेत्र की हलारी नस्ल की गधी न केवल अपने दूध के लिए प्रसिद्ध है बल्कि इस नस्ल की अनूठी विशेषताएं इसे एक अमूल्य धरोहर बनाती हैं. हलारी गधी के दूध को लिक्विड गोल्ड कहा जाता है. इसके औषधीय गुण भी इसे खास बनाते हैं.
गधी के दूध को प्राचीन समय से औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है. इसकी संरचना मानव दूध से मिलती-जुलती है, जिससे यह गाय के दूध से एलर्जी वाले शिशुओं के लिए एक आदर्श विकल्प बनता है. अध्ययनों में पाया गया है कि यह आंतों के माइक्रोफ्लोरा को बेहतर बनाता है. इम्यूनिटी को बढ़ावा देता है और इसमें कुछ 'एंटी-डायबिटिक' गुण भी होते हैं.
हलारी गधी का दूध स्किनकेयर उत्पादों में भी इस्तेमाल किया जा रहा है. यह त्वचा को हाइड्रेट करता है, झुर्रियों को कम करता है और इसे ग्लोइंग बनाता है. साबुन, स्किन जैल और फेस वॉश जैसे उत्पादों में इसका उपयोग बढ़ रहा है. इन गुणों के कारण यह दूध ग्लोबल कॉस्मेटिक इंडस्ट्री में भी लोकप्रिय हो रहा है. इसी कड़ी में हलारी नस्ल की गधी काफी चर्चा में है.
असल में टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक हालारी नस्ल के गधों की संख्या अब खतरनाक रूप से घटकर केवल 439 रह गई है. इनमें 110 नर हैं. 2018 में इसे स्वतंत्र नस्ल का दर्जा दिया गया था. लेकिन गुजरात और राजस्थान में इसकी आबादी में भारी गिरावट देखी गई है. विशेषज्ञों का कहना है कि यदि तुरंत कदम नहीं उठाए गए तो यह नस्ल अगले पांच वर्षों में विलुप्त हो सकती है.
बीकानेर के राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र (NRCE) ने हलारी नस्ल के संरक्षण और इसके दूध के गुणों का अध्ययन शुरू किया है. स्किनकेयर एप्लिकेशन के लिए इसकी टेस्टिंग की जा रही है. यदि इसके सकारात्मक परिणाम आते हैं तो यह नस्ल को संरक्षित करने और किसानों के लिए आय का नया स्रोत बनने में मदद करेगा.
हलारी गधे कम चारा और पानी में भी जीवित रह सकते हैं. उनकी चराई की आदतें पर्यावरण पर कम प्रभाव डालती हैं और पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने में मदद करती हैं. एक किसान जिसके पास पांच हलारी गधे हैं प्रतिदिन 1,500 रुपये तक कमा सकता है. यह स्थायी डेयरी फार्मिंग का एक बेहतरीन उदाहरण है. रिपोर्ट के मुताबिक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर तो ये कई बार 5,000 से 7,000 रुपये प्रति लीटर तक बिकता है.
हलारी गधे का नाम जाम श्री हलाजी जडेजा के पूर्वज जाम श्री रावलजी लाखाजी जडेजा के नाम पर रखा गया है. सफेद बालों वाले ये गधे आम गधों से बड़े लेकिन घोड़ों से छोटे होते हैं. इनके संरक्षण के लिए जागरूकता अभियान और पारंपरिक समारोह भी आयोजित किए जा रहे हैं.
फिलहाल हलारी नस्ल की गधी का दूध सेहत, सौंदर्य और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में नई संभावनाओं का द्वार खोल रहा है. इसे संरक्षित करना केवल एक नस्ल को बचाने का कार्य नहीं है बल्कि यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी को संतुलित रखने का प्रयास भी है.
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