Siachen Glacier: रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सोमवार को सियाचिन का दौरा करेंगे और दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र में तैनात भारतीय सैनिकों से बातचीत करेंगे. दरअसल, पिछले हफ्ते, भारतीय सेना ने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण सियाचिन ग्लेशियर पर अपनी उपस्थिति के 40 वर्ष पूरे किए है, जिसके उपलक्ष में रक्षा मंत्री कल सियाचिन पहुंचेंगे. वहीं, इस मौके पर हम आपको सियाचिन ग्लेशियर के बारे में 10 ऐसे फैक्ट के बारे में बताएंगे, जिसके बारे में शायद ही आप जानते हों.
सियाचिन ग्लेशियर हिमालय की पूर्वी काराकोरम श्रृंखला में स्थित है. यह समुद्र तल से करीब 5,000 मीटर (16,400 फीट) से अधिक की ऊंचाई पर है. वहीं, यह दुनिया का सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र भी है.
सियाचिन दुनिया के सबसे बड़े ग्लेशियरों में से एक है. इसकी लंबाई लगभग 76 किलोमीटर (47 मील) और चौड़ाई 2.8 किलोमीटर (1.7 मील) है.
सियाचिन का मौसम काफी क्रूर है, यहां तापमान -60°C (-76°F) तक गिर जाता है. वहीं, यहां बार-बार आने वाले बर्फीले तूफान मौसम और पर्यावरण की कठोरता को बढ़ाते हैं, जिस कारण यहां तैनात सैनिकों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
1984 के बाद से भारत और पाकिस्तान, सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण को लेकर लंबे समय से संघर्ष में उलझे हुए हैं. सियाचिन भारत के लिए काफी रणनीतिक महत्व रखता है, जो नियंत्रण रेखा (LoC) पर गतिविधियों की निगरानी के लिए एक सुविधाजनक स्थान के रूप में कार्य करता है.
भारत और पाकिस्तान दोनों ही इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण सैन्य उपस्थिति बनाए रखते हैं. सैनिकों को बर्फीले युद्धक्षेत्र में उत्पन्न चुनौतियों का सामना करते हुए, खतरनाक मौसम की स्थिति के अनुकूल रहना पड़ता है, जो अक्सर जानलेवा साबित होता है.
सैन्य गतिविधियों के कारण यहां काफी पर्यावरणीय क्षति भी हुई है, जिसमें ग्लेशियर का पिघलना और कूड़े-कचरे से होने वाला प्रदूषण भी शामिल है. यहां लोगों के हस्तक्षेप के कारण प्राचीन परिदृश्य को नुकसान हुआ है.
यह क्षेत्र अत्यधिक प्रतिबंधित है, और आम नागरिक यहां भारत सरकार की विशेष अनुमति के बिना नहीं जा सकते.
इतनी ऊंचाई पर ऑक्सीजन का कम लेवल सैनिकों के लिए एक बड़ा खतरा पैदा करता है. यहां कई सौनिक ऊंचाई की बीमारी, वजन घटना, भूख न लगना, नींद संबंधी बीमारी और याददाश्त के खोने से भी पीड़ित हैं.
सियाचिन में तैनात सैनिकों को क्रूर मौसम से संघर्ष के दौरान भारी क्षति भी हुई है. हिमस्खलन, दरारों और चरम मौसम की स्थिति के कारण 2,000 से अधिक सैनिकों ने यहां अपनी जान गंवाई है.
दरअसल, सियाचिन भारत के लिए इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह पाकिस्तानी सेना को चीन के साथ जुड़ने से रोकता है और लद्दाख के लिए एक सुरक्षात्मक स्थान के रूप में कार्य करता है. सियाचिन आज इस दुर्गम इलाके में सैनिकों द्वारा किए गए बलिदान का एक प्रमाण बना हुआ है.
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