उस साल, लैरी पेज और सर्गेई ब्रिन ने एक ऐसे खजाने के साथ याहू के दरवाजे खटखटाए, जो इंटरनेट की दुनिया को बदल सकता था. उन्होंने याहू को अपना अद्भुत सर्च इंजन सिस्टम दिखाया. उन्होंने अपना पेजरैंक सिस्टम सिर्फ 1 मिलियन डॉलर में बेचने की बात की थी. लेकिन अफसोस, याहू इस खजाने की कीमत नहीं समझ पाया और इस सुनहरे मौके को हाथ से जाने दिया.
1999 की शुरुआत में, संस्थापकों ने पाया कि उनकी पढ़ाई उनके बढ़ते सर्च इंजन प्रोजेक्ट के लिए एक बाधा बन रही हैं. उन्होंने अपना सर्च इंजन एक्साइट को 1 मिलियन डॉलर में बेचने का प्रस्ताव रखा. एक्साइट के सीईओ जॉर्ज बेल ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया, यहां तक कि वेंचर कैपिटलिस्ट विनोद खोसला ने मूल्यांकन को घटाकर 750,000 डॉलर कर दिया था.
साल 2002 में, गूगल ने इंटरनेट विज्ञापन की दुनिया में क्रांति ला दी. उन्होंने एडवर्ड्स नाम का एक ऐसा प्लेटफॉर्म बनाया जिसने कंपनियों को अपने उत्पादों को लाखों लोगों तक पहुंचाने का एक नया तरीका दिया. इस प्लेटफॉर्म में कंपनियां उन शब्दों पर दांव लगा सकती थीं जो उनके उत्पाद से जुड़े थे और जब कोई यूजर उस शब्द को सर्च करता था तो उनका विज्ञापन दिखाई देता था. ये विज्ञापन सिर्फ दांव लगाने पर ही नहीं, बल्कि लोगों द्वारा इन पर क्लिक करने पर भी निर्भर करते थे. इस नए तरीके से गूगल ने न सिर्फ कंपनियों को बल्कि यूजर्स को भी फायदा पहुंचाया. गूगल के इस अद्भुत आविष्कार ने उसे तकनीकी दुनिया का एक बड़ा खिलाड़ी बना दिया.
साल 2002 में, याहू कंपनी के मालिक टेरी सेमेल ने गूगल को खरीदने के बारे में सोचा था. याहू कंपनी के शुरुआत करने वाले लोगों ने टेरी सेमेल को ऐसा करने के लिए कहा था. टेरी सेमेल ने गूगल के मालिकों, लैरी पेज और सर्गेई ब्रिन से मिले और उनसे पूछा कि वे आगे क्या करना चाहते हैं. टेरी सेमेल ने बाद में बताया कि लैरी पेज और सर्गेई ब्रिन को खुद नहीं पता था कि वे आगे क्या करना चाहते हैं.
सबसे पहले, गूगल के मालिकों ने याहू से एक अरब डॉलर मांगे थे. जब याहू के मालिक मान गए तो उन्होंने अपनी मांग बढ़ाकर तीन अरब डॉलर कर दी. इस तरह बातचीत टूट गई. इसके बाद याहू के मालिकों ने दूसरी तरकीबें अपनाईं. उन्होंने एक और सर्च इंजन, जिसका नाम इंकटोमी था, खरीदने का फैसला किया. लेकिन गूगल बहुत तेजी से बढ़ रहा था और याहू उससे पीछे रह गया.
ट्रेन्डिंग फोटोज़