साधु संतों के अंतिम संस्कार से जुड़ी अलग अलग परंपराएं और नियम हैं. यह नियम और परंपराएं संप्रदाय के आधार पर तय की जाती हैं किस साधु संत का अंतिम संस्कार कैसे और किस विधि विधान से होगा यह उनके संप्रदाय पर निर्भर करता है. अलग अलग संप्रदाय में अंतिम संस्कार के अलग अलग नियम हैं. तो चलिए जानते हैं कौन से संप्रदाय के संतों का अंतिम संस्कार किस विधि विधान से होता है.
जानकारी के अनुसार वैष्णव संप्रदाय के संतों में अधिकरत अग्नि संस्कार ही किया जाता है. वहीं दूसरी ओर संन्यासी परंपरा में अंतिम संस्कार के तीन तरीकों से हाता है जिसमें दाह संस्कार, जल समाधि और भू-समाधि शामिल है. ऐसे साधु संत जो जीवनभर तपस्या में लीन रहे हैं उन्हें जल समाधि दी जाती है. इस श्रेणी में निर्वाण प्राप्त संन्यासी, नागा साधु, अखाड़ों के प्रमुख भी शामिल हैं. इसके अलावा कई बार संन्यासी की अंतिम इच्छानुसार उनके शव को जंगल में ही छोड़ दिया जाता है.
हिंदु धर्म के कई पौराणिक ग्रथों में जल समाधि का जिक्र किया गया है. शुरु से ही संन्यासी समाज में जल समाधि और भू समाधि की परंपरा रही है. आमतौर पर देखा जाए तो ज्यादातर संतों को जल समाधि ही दी जाती है. यह एक अंतिम संस्कार की एक विशेष परंपरा होती है. इस परंपरा में साधु संतों के पार्थिव शरीर को जल में प्रवाहित कर दिया जाता है. ऐसी धार्मिक मान्यताएं हैं कि जल समाधि से आत्मा को जल्द ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है. यही कारण है कि जल को शुद्ध करने वाला तत्व माना जाता हैं
आमतौर पर हिंदू धर्म में जब किसी की मृत्यु हो जाती है तो उसका शव जमीन पर लिटाकर रख देते हैं और शोक सभा में बैठ जाते हैं. लेकिन साधु संतों का अंतिम संस्कार की विधियां आमजनों से बिलकुल अलग हैं. लेकिन साधु संतों के शव हो लिटाया नहीं जाता बल्कि शव को समाधि वाली स्थिति में बैठाकर ही अंतिम विदाई दी जाती है. जिस मुद्रा में संतों को समाधि दी जाती है दसे सिद्ध योग मुद्रा कहते हैं.
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