इंसानों का बूचड़खाना! कहानी उस जेल की जहां दी जाती थीं यातनाएं, 13000 लोगों को दी गई दर्दनाक मौत
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इंसानों का बूचड़खाना! कहानी उस जेल की जहां दी जाती थीं यातनाएं, 13000 लोगों को दी गई दर्दनाक मौत

Syria News: आज हम सीरिया के सबसे भयानक जेलों में से एक उसी सेडनाया जेल की बात करेंगे, जिसमें हजारों लोगों की बेरहमी से असद प्रशासन ने हत्या कर दी थी. आखिर क्यों यह जेल किसी भी आम जेल से अलग थी? यह जेल मौत की फैक्ट्री क्यों कही जाती थी? आइए जानते हैं.

इंसानों का बूचड़खाना! कहानी उस जेल की जहां दी जाती थीं यातनाएं, 13000 लोगों को दी गई दर्दनाक मौत

Sednaya Jail: सीरिया में बीते साल दिसंबर महीने में तख्तापलट हो गया था और विद्रोही समूह हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) ने दमिश्क पर कब्जा कर लिया. इसी के साथ वहां की कुर्सी पर 24 साल से काबिज बशर अल-असद की सत्ता का भी पतन हो गया. पूर्व राष्ट्रपति असद ने देश छोड़कर रूस में शरण में ली है. लेकिन उन्होंने वहां के अवाम, खासतौर पर सरकार के खिलाफ बोलने वाले लोगों के साथ जो उन्होंने किया उनकी कहानी. सेडयाना जेल में दी जाने वाली तायनाएं. ये सब जानकर आपकी रूह तक कांप जाएगी.

आज हम सीरिया के सबसे भयानक जेलों में से एक उसी सेडनाया जेल की बात करेंगे, जिसमें हजारों लोगों की बेरहमी से असद प्रशासन ने हत्या कर दी थी. आखिर क्यों यह जेल किसी भी आम जेल से अलग थी? यह जेल मौत की फैक्ट्री क्यों कही जाती थी? 

यातनाओं का अंतहीन सिलसिला
मोहम्मद काफरजूमे नामक शख्स ने इस भयावह जेल में दस साल बिताए. अगस्त 2011 में, वह दमिश्क में एक शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन में हिस्सा ले रहे थे तब असद सरकार के सैनिकों ने उन्हें पकड़ लिया. बिना किसी सुनवाई के उन्हें सेडनाया जेल में डाल दिया. उनका जुर्म? सिर्फ 'सरकार का विरोध करना था'- एक ऐसा जुर्म जो अक्सर तानाशाही सरकारें अपनी सत्ता बचाने के लिए बनाती हैं.

जेल में घुसते ही उनका इस्तकबाल हिंसा से हुआ. उन्हें अन्य कैदियों के साथ एक तंग जगह में ठूंस दिया गया, फिर नंगा कर बेरहमी से पीटा गया.  हर दिन उनके शरीर को नाकाबिले-बर्दाश्त दर्द झेलना पड़ता था. उन्हें छत से उल्टा लटकाया जाता और बेल्ट, लोहे की छड़ों, पाइपों और यहां तक कि टैंक की धातु की पटरियों से पीटा जाता था. लेकिन सबसे भयानक बात यह थी कि उनसे कोई कबूलनामा भी नहीं मांगा जा रहा था – यह यातनाएं सिर्फ एंटरटेनमेंट के लिए दी जाती थीं.

जेल नहीं... जहन्नम
सेडनाया जेल को 'मानव वधशाला' कहा जाता था. मानवाधिकार संगठनों के मुताबिक, 2011 से 2015 के बीच वहां 13,000 कैदियों को यातानाएं देकर मौत के घाट उतार दिया, जबकि इतने ही लोगों को फांसी पर लटका दिया गया.

जेल के अंदर हर कोना दर्द और मौत की गवाही देता था. वहां छोटे-छोटे पिंजरे थे, जहां कैदियों को रखा जाता था – इतने छोटे कि वे ठीक से बैठ भी नहीं सकते थे. यातना देने के लिए वहां लोहे की छड़ें भरी पड़ी थीं, जिनमें से कुछ को और भारी बनाने के लिए सीमेंट से भर दिया गया था.

बाथरूम में  नल तो थे, लेकिन कैदियों को नहाने के लिए महज  55 सेकंड का वक्त दिया जाता था. अगर वे एक सेकंड भी ज्यादा रुके, तो उन्हें बेरहमी से पीटा जाता. मोहम्मद ने बताया कि उन्होंने छह महीने बाद पहली बार नहाया था, लेकिन यह राहत नहीं बल्कि और ज्यादा यातनाओं से भरा दिन साबित हुई – वहां पानी कभी इतना ठंडा होता कि हड्डियां जम जाएं, तो कभी इतना गर्म कि शरीर जल जाए.

मौत की गिनती
हर दिन पहरेदार कैदियों को उनके नाम से नहीं, बल्कि संख्या से बुलाते थे. जिसका नंबर आ जाता, उसे बाहर ले जाकर मार दिया जाता. मोहम्मद का नंबर 44 था. उन्होंने बताया कि शायद वह असद प्रशान के कहर से इसलिए बचे रहे क्योंकि उनके बारे में इंटरनेशनल मीडिया में कई खबरें थीं.

डॉक्टर बने जल्लाद
सेडनाया में मौत हर तरफ थी. कैदियों को ठूंस-ठूंस कर इतनी छोटी जगहों में रखा जाता था कि कई बार लोग खड़े-खड़े मर जाते और उनके डेड बॉडी वहीं सड़ते रहते. डॉक्टर, जो मरीजों की देखभाल करने के लिए होता है, वहां एक जल्लाद बन चुका था. अगर कोई बीमार मिलता, तो उसे मरने के लिए चिह्नित कर दिया जाता.

शारीरिक यातनाओं के अलावा मानसिक यातनाएं भी दी जाती थीं. कैदियों की आंखों पर पट्टी बांध दी जाती थी ताकि वे पहरेदारों को पहचान न सकें और उनके साथ कोई भावनात्मक रिश्ता न बना सकें. सब कुछ इस तरह बनाया गया था कि उन्हें उनकी इंसानियत से महरूम कर दिया जाए.

मोहम्मद ने बताया कि उन्हें सबसे ज्यादा तकलीफ तब हुई जब उनके परिवार ने उन्हें पहचानने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा, 'मैं जब जेल गया था, तब मेरे बच्चे बहुत छोटे थे. जब मैं वापस आया, तो वे मुझे पिता मानने से इंकार कर रहे थे. वे मेरे पास बैठते भी नहीं. उनके लिए मैं मर चुका था, और फिर से जिंदा लौट आया.'

आज़ादी और इंसाफ
जब विद्रोहियों ने उन्हें जेल को मुक्त कराया, तो वहां हजारों लोग अपने भाई, बेटे, पिता, पति बहन वगैरहर की तलाश में पहुंचे. दीवारों पर लापता लोगों की तस्वीरें चिपकी हुई थीं. लोगों ने वहां खुदाई कर कैदियों को खोजने की कोशिश भी की.

जब मोहम्मद ने जेल छोड़ी, तो वहां का नजारा भयानक था. मलबे, टूटी हुई इमारतें, और दीवारों पर लिखे शब्द  'यह एक वधशाला है. हम कभी माफ नहीं करेंगे, और कभी नहीं भूलेंगे.' सीरिया एक वक्त एक खुली जेल की तरह बन चुका था, और तानाशाह बशर अल-असद उसका जेलर. लेकिन जब विद्रोही ताकतें विजयी हुईं, तो सेडनाया जेल भी गिर गया. अब यह एक प्रतीक बन चुका है – उन हजारों बेगुनाह लोगों के दर्द का जो वहां मारे गए.

'सेडनाया जेल'...अब सिर्फ कहानी
सेडनाया जेल की कहानी केवल एक जेल की कहानी नहीं है, बल्कि यह तानाशाही की बर्बरता और बेगुनाह लोगों पर होने वाले अत्याचारों की कहानी है, जो इसका सबूत भी है की  जब सत्ता का दुरुपयोग किया जाता है, तो इंसानियत कैसे खत्म हो जाती है.

लेकिन यह कहानी महज यातनाओं की नहीं, बल्कि जद्दोजह और जिंदा रहने की भी है. मोहम्मद काफरजूमे जैसे लोग, जिन्होंने इतनी यातनाएं झेलीं और फिर भी जिंदा बचे, वे इस बात का सबूत हैं कि इंसान की बर्दाश्त कितनी असीम होती है. सेडनाया जेल अब भले ही बंद हो गया हो, लेकिन इसके पीड़ितों की यादें और उनकी कहानियां हमेशा जिंदा रहेंगी – यह याद दिलाने के लिए कि तानाशाहों को कभी माफ नहीं किया जाना चाहिए.

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