Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने प्लेसेज ऑफ वर्शिंप एक्ट से जुड़ी कई याचिकाओं को लेकर नाराजगी जाहिर की है. इसको लेकर CJI संजीव खन्ना ने याचिका स्वीकार करने से मना कर दिया.
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Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने प्लेसेज ऑफ वर्शिंप एक्ट से जुड़ी 7 याचिकाओं पर आज सुनवाई टाल दी. मामले की सुनवाई 2 जजों की बेंच में होनी थी. इसको लेकर CJI संजीव खन्ना ने कहा कि आज केवल 2 जजों की बेंच ही बैठी है. ऐसे में यह केस किसी और दिन देखा जाएगा. इसके अलावा CJI ने मामले पर दाखिल इंटरवेंशन एप्लिकेशंस को लेकर कहा कि आज वह ऐसी कोई याचिका स्वीकार नहीं करने वाले हैं.
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याचिका पर नहीं होगी सुनवाई
CJI ने कहा,' याचिकाएं दायर करने की एक सीमा होती है. बहुत सारे अंतरिम आवेदन दायर किए गए हैं. हम शायद इस पर सुनवाई नहीं कर पाएं.' उन्होंने 12 दिसंबर, 2024 के अपने आदेश के जरिए कई हिंदू पक्षों की ओर से दायर लगभग 18 मुकदमों में कार्यवाही को प्रभावी ढंग से रोक दिया, जिसमें वाराणसी में ज्ञानवापी, मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद और संभल में शाही जामा मस्जिद सहित 10 मस्जिदों के मूल धार्मिक चरित्र का पता लगाने के लिए सर्वेक्षण का अनुरोध किया गया था. संभल की शाही जामा मस्जिद में झड़पों में चार लोग मारे गए थे. इसके बाद कोर्ट ने सभी याचिकाओं को 17 फरवरी को प्रभावी सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया था. AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, समाजवादी पार्टीीके नेता और कैराना की सांसद इकरा चौधरी और कांग्रेस पार्टी समेत अन्य ने 12 दिसंबर 2024 के बाद कई याचिकाएं दायर कीं, जिनमें साल 1991 के कानून के प्रभावी कार्यान्वयन का अनुरोध किया गया है. इकरा चौधरी ने 14 फरवरी को मस्जिदों और दरगाहों को निशाना बनाकर कानूनी कार्रवाई की बढ़ती प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने का अनुरोध किया था. इसके बारे में उनका कहना था कि इससे सांप्रदायिक सद्भाव और देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को खतरा है.
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ओवैसी की याचिका
शीर्ष अदालत ने पहले ओवैसी की इसी तरह की प्रार्थना वाली एक अलग याचिका पर विचार करने पर सहमति जताई थी. हिंदू संगठन 'अखिल भारतीय संत समिति' ने साल 1991 के कानून के प्रावधानों की वैधता के खिलाफ दायर मामलों में हस्तक्षेप करने का अनुरोध करते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था. इससे पहले पीठ 6 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी जिसमें वकील अश्विनी उपाध्याय की ओर से दायर मुख्य याचिका भी शामिल थी. उपाध्याय ने 1991 के कानून के कई प्रावधानों को चुनौती देते हुए यह याचिका दायर की है. यह कानून किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र में परिवर्तन पर रोक लगाता है और किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को 15 अगस्त, 1947 के समय के अनुसार बनाए रखने का प्रावधान करता है, हालांकि अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद से संबंधित विवाद को इसके दायरे से बाहर रखा गया था.
इन विवादों को लेकर याचिका
‘जमीयत उलेमा-ए-हिंद’ जैसी मुस्लिम संस्थाएं सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने और मस्जिदों की वर्तमान स्थिति को बनाए रखने के लिए 1991 के कानून का सख्ती से अमल चाहते हैं. हिंदुओं ने इस आधार पर इन मस्जिदों को पुनः प्राप्त करने का अनुरोध किया है कि वे आक्रमणकारियों द्वारा ध्वस्त किए जाने से पहले मंदिर थे. दूसरी तरफ उपाध्याय जैसे याचिकाकर्ताओं ने अधिनियम की धारा 2, 3 और 4 को अलग रखने का अनुरोध किया है. इसके कारणों में यह दलील भी शामिल थी कि ये प्रावधान किसी व्यक्ति या धार्मिक समूह के पूजा स्थल को पास पाने के लिए न्यायिक उपचार के अधिकार को छीन लेते हैं. पीठ ने कहा कि प्राथमिक मुद्दा 1991 के कानून की धारा 3 और 4 के संबंध में है. धारा 3 पूजा स्थलों के रूपांतरण पर रोक से संबंधित है, जबकि धारा 4 कुछ पूजा स्थलों के धार्मिक चरित्र और न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र पर रोक आदि की घोषणाओं से संबंधित है. ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन समिति ने अपनी हस्तक्षेप याचिका में 1991 के कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई लंबित याचिकाओं का विरोध किया. मस्जिद समिति ने मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद, दिल्ली के कुतुब मीनार के पास कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद, मध्य प्रदेश में कमाल मौला मस्जिद और अन्य समेत कई मस्जिदों और दरगाहों के संबंध में सालों से किए जा रहे विवादास्पद दावों को सूचीबद्ध किया है. ( इनपुट- भाषा)