नाम है- एकनाथ शिंदे... कभी ठाणे की सड़कों पर ऑटो चलाने वाला एक युवक आने वाले समय में महाराष्ट्र सरकार की ड्राइविंग सीट पर बैठ सकता है, शायद ही किसी ने सोचा होगा. उन्होंने ढाई साल से चल रही महाविकास अघाड़ी सरकार पर एक झटके में ब्रेक लगा ही दिया. उद्धव ठाकरे को सिंहासन से उखाड़ फेंका और खुद मुख्यमंत्री बन गए.
विद्रोह ने महाराष्ट्र की राजनीति में ला दिया भूकंप
एकनाथ शिंदे राजनीति के वो खिलाड़ी निकले, जिनके विद्रोह ने महाराष्ट्र की राजनीति में भूकंप ला दिया. उद्धव ठाकरे के पैरों के नीचे से जमीन खींच ली. मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए वो सीएम आवास खाली करने पर मजबूर हो गए. कुछ ही दिन बाद उद्धव को इस्तीफा देना पड़ा. एकनाथ शिंदे ने वो कर दिखाया, जो अब तक शिवसेना का कोई भी बागी नहीं कर सका था. उन्होंने एक ही बाजी में शिवसेना पार्टी और महाराष्ट्र की सत्ता दोनों पर कब्जा करने का दांव खेला और इस गेम में बीजेपी उनके कदम से कदम मिलाकर चल रही है.
एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे को न सिर्फ चुनौती दिया और सत्ता से बेदखल किया, बल्कि शिवसेना के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे का नाम बार-बार लेकर, उद्धव को खूब जलाया. शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे ने कहा कि 'हम बाला साहेब के हिंदुत्व को आगे ले जाना चाहते हैं.'
लेकिन शिव सेना कह रही है कि एकनाथ शिंदे ने बाला साहेब ठाकरे के साथ गद्दारी की है. 58 साल के एकनाथ शिंदे ने राजनीति में शून्य से शिखर तक सफर तय किया है. उनका परिवार सतारा का रहने वाला है. पढ़ाई के लिए एकनाथ शिंदे ठाणे आए, लेकिन 11वीं क्लास के बाद पढ़ाई छूट गई. गुजर बसर के लिए एकनाथ शिंदे ऑटो चलाने लगे. आज उनके पास 11 करोड़ रु. से अधिक की संपत्ति है.
एकनाथ शिंदे पर तंज कसते रहे संजय राउत
शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने इसे लेकर तंज कसा. उन्होंने कहा कि 'पहले वो रिक्शा चलाते थे, अब मर्सिडीज रिक्शा चलाते हैं.' राजनीति में दोस्ती और दुश्मनी हालात के हिसाब से तय होती है, लेकिन एकनाथ शिंदे जब ऑटो ड्राइवर थे, उस दौर के उनके दोस्तों को अब भी शिंदे पर भरोसा है.
एकनाथ शिंदे के पुराने दोस्त कैलाश महापदी कहते हैं कि 'वो साधारण सेवक थे, टेंपो चलाते थे, हमने उनको देखा, उनमें इंसानियत है. मंत्री बनने पर भी किसी का हाथ नहीं छोड़ा.'
एकनाथ शिंदे शायद राजनीति में नहीं आते अगर उनकी मुलाकात ठाणे में शिवसेना नेता आनंद दिघे से नहीं होती. बाला साहेब ठाकरे के अलावा जिस नेता को एकनाथ शिंदे अपना आदर्श मानते हैं, वो हैं शिवसेना के नेता स्वर्गीय धर्मवीर आनंद दिघे हैं.
आनंद दिघे के सिखाए रास्ते पर चल रहे हैं शिंदे
एकनाथ शिंदे कहते हैं कि वो धर्मवीर आनंद दिघे के सिखाए रास्ते पर चल रहे हैं, लेकिन शिव सेना का दावा है कि एकनाथ शिंदे आनंद का नाम सिर्फ अपने सियासी फायदे के लिए ले रहे हैं. शिवसेना को लगे झटके के बाद संजय राउत ने कहा था कि 'धर्मवीर आनंद दिघे को हमने नजदीक से देखा है, हमें मत सिखाओ. गद्दारों को क्षमा नहीं मिल सकती, ये बयान मैंने लिखकर दिया, तब कहा था.'
आपको बताते हैं कि आनंद दिघे कौन हैं? जिनका नाम एकनाथ शिंदे बार बार लेते हैं. जिनके विचारों और सिद्धातों पर चलने की कसम खाते हैं.
एकनाथ शिंदे के गुरु आनंद दिघे को जानिए
पिछले महीने धर्मवीर आनंद दिघे पर एक फिल्म रिलीज हुई, जिसका नाम है, धर्मवीर मुक्काम पोस्ट ठाणे. आनंद दिघे के समर्थक उन्हें धर्मवीर कहते थे. इस फिल्म में एकनाथ शिंदे का किरदार भी नजर आया है.
आनंद दिघे शिवसेना के ताकतवर और कद्दावर राजनेता थे. ठाणे-कल्याण और आसपास के इलाकों में उनका काफी असर था. वो जनता के मुद्दों को लेकर सड़क पर उतरते थे. आम लोगों के हक के लिए सत्ता और प्रशासन से टकराने में हिचकिचाते नहीं थे. आनंद दिघे प्रखर हिंदुत्व की विचारधारा को मानते थे.
बाला साहेब ठाकरे से प्रभावित होकर वो शिवसेना से जुड़े. बाला साहेब ठाकरे आनंद दिघे पर बहुत भरोसा करते थे. 1980 और 1990 के दशक में ठाणे कल्याण में बाला साहेब ठाकरे के बाद वो आनंद दिघे दूसरे सबसे शक्तिशाली नेता बन चुके थे. आनंद दिघे इतने लोकप्रिय थे कि उन्हें ठाणे का ठाकरे भी कहा जाता था.
ठाणे के बाल ठाकरे कहे जाते थे आनंद दिघे
एकनाथ शिंदे के गुरु आनंद दिघे ठाणे जिले में शिवसेना के लिए दरबार लगाते थे, जिसमें आम लोगों की समस्याओं का हल करते थे. आनंद दिघे के फैसले को अंतिम माना जाता था. खुद बाला साहेब ठाकरे भी इसमें ज्यादा दखलंदाजी नहीं करते थे.
इन्हीं आनंद दिघे की उंगली पकड़कर एकनाथ शिंदे ने राजनीति की रपटीली राहों पर चलना सीखा. मुंबई आने से पहले एकनाथ शिंदे ने आनंद दिघे की छत्रछाया में पॉलिटिक्स की एबीसीडी सीखी. 18 वर्ष की उम्र में एकनाथ शिंदे शिवसेना में शामिल हुए.
एकनाथ शिंदे ने करीब 15 साल तक आनंद दिघे के साथ शिवसेना में कार्यकर्ता के रूप में काम किया. इससे उनका राजनीतिक आधार मजबूत हो गया. आनंद दिघे ने उन्हें जमीनी सियासत के दांवपेच सिखाए.
जब एकनाथ शिंदे को आनंद दिघे ने दिया सहारा
इसके बाद 1997 में आनंद दिघे ने एकनाथ शिंदे को चुनावी राजनीति में उतारा. ठाणे नगर निगम चुनाव में शिवसेना से पार्षद का टिकट मिला. शिंदे ने अपना पहला इम्तिहान पास कर लिया. 2001 में वो नगर निगम में विपक्ष के नेता बने. 2002 में एकनाथ शिंदे दूसरी बार पार्षद का चुनाव जीतने में सफल रहे.
इस बीच एकनाथ शिंदे को एक बड़ा सदमा लगा. उनके दो बच्चों की डूबने से मौत हो गई. दुख की इस घड़ी में आनंद दिघे ने उन्हें सहारा दिया.
एकनाथ शिंदे के दोस्त कैलाश महापदी बताते हैं कि 'बहुत दुख सहे, तालाब में बच्चे डूबे, आनंद राजनीति में लेकर आए.' राजनीति की राह में एकनाथ शिंदे आनंद दिघे के उत्तराधिकारी बनकर उभरे. एकनाथ शिंदे में लोगों को धर्मवीर आनंद दिघे की छवि नजर आती थी.
इन दोनों तस्वीर को अगर एक साथ देखें तो आप अंदाज लगा सकते हैं कि एकनाथ शिंदे पर आनंद दिघे का कितना असर है. सफेद कपड़े, माथे पर लाल तिलक और दाढ़ी. पहनावे से लेकर हेयर स्टाइल तक एकनाथ शिंदे अपने राजनीतिक गुरु को फॉलो करते नजर आते हैं.
आनंद दिघे की ही तरह एकनाथ शिंदे के दरवाजे भी अपने समर्थकों और पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए हमेशा खुले रहते हैं. वो बेबाकी से अपनी बात रखने के लिए जाने जाते हैं. 2001 में एक हादसे में आनंद दिघे की मौत हो गई. धीरे धीरे एकनाथ शिंदे ने उनकी जगह ले ली. ठाणे और आस पास के क्षेत्रों में वो शिव सेना के सबसे बड़े नेता बनकर उभरे.
महाराष्ट्र की सियासत में कैसे आगे बढ़े शिंदे?
अब वो महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ी भूमिका निभाने के लिए तैयार थे. पार्षद से विधायक बनने की बारी थी. 2004 के विधानसभा चुनाव में शिव सेना ने ठाणे से एकनाथ शिंदे को टिकट दिया. उन्होंने फिर अपना दबदबा कायम किया. इसके बाद 2009, 2014 और 2019 के विधानसभा चुनावों में भी वो विधायक चुने गए.
आज एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे के बीच 36 का आंकड़ा है. लेकिन एक दौर वो भी था, जब शिंदे ठाकरे परिवार के करीबी थे. शिव सेना सुप्रीमो बाल ठाकरे भी उन पर भरोसा करते थे. पार्टी से जुड़े बड़े फैसलों में उनकी सलाह ली जाती थी. 2005 में नारायण राणे और राज ठाकरे ने शिव सेना छोड़ दी. इसके बाद पार्टी में एकनाथ शिंदे का कद और बढ़ गया.
2014 में शिवसेना-बीजेपी की गठबंधन सरकार बनी. तत्कालीन सीएम देवेंद्र फडवणीस ने एकनाथ शिंदे को लोकनिर्माण मंत्री बनाया. देवेंद्र फडणवीस एकनाथ शिंदे पर विश्वास करने लगे. लेकिन फडणवीस के साथ शिंदे की नजदीकी शिवसेना में कई नेताओं को पसंद नहीं आ रही थी.
जब एकनाथ शिंदे के साथ शिवसेना ने किया धोखा
2019 के विधानसभा चुनाव के बाद एकनाथ शिंदे का नाम मुख्यमंत्री पद की रेस में आगे था. उन्हें शिवसेना विधायक दल का नेता चुना गया था. उनके समर्थकों ने तो एकनाथ शिंदे भावी मुख्यमंत्री के पोस्टर भी लगा दिए थे, लेकिन बीजेपी-शिव सेना के बीच बात नहीं बनी.
एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद सामना के संपादकीय में भी इसका जिक्र आया. मुख्यमंत्री बनाने के लिए उद्धव ठाकरे ने शिंदे को वचन दिया था, ऐसा कहा जाता है. इससे यह बगावत हुई. मुख्यमंत्री पद को लेकर वचन हो सकता है, परंतु भारतीय जनता पार्टी के साथ हुए 'ढाई साल' के मुख्यमंत्री पद के करार को भाजपा ने तोड़ दिया. यह करार पूरा हुआ होता तो निश्चित तौर पर श्री शिंदे ही मुख्यमंत्री बने होते. उद्धव ठाकरे ने उनका नाम आगे किया होता.
सूत्रों के मुताबिक 2019 में एनसीपी-कांग्रेस के दबाव की वजह से उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाया गया.
उद्धव सरकार में एकनाथ शिंदे को शहरी विकास मंत्री बनाया गया. वो पार्टी में दूसरे सबसे अहम नेता माने जाते थे. लेकिन शिंदे महाविकास अघाड़ी के गठबंधन से खुश नहीं थे. शिंदे को शिकायत थी कि सीएम उद्धव ठाकरे उनकी अनदेखी कर रहे हैं. बताया जाता है कि उद्धव ठाकरे से मिलने के लिए उन्हें लंबा इंतजार करना पड़ता था. पार्टी में एकनाथ शिंदे के मुकाबले आदित्य ठाकरे का ग्राफ बढ़ता जा रहा था. ऐसे में उद्धव ठाकरे के साथ एकनाथ शिंदे के रिश्तों में खटास आने लगी.
एकनाथ शिंदे ने ठाकरे परिवार पर की तगड़ी चोट
ठाकरे परिवार शिवसेना की सबसे बड़ी ताकत रही है, लेकिन एकनाथ शिंदे ने इसी पर सबसे तगड़ी चोट की. वो बागी विधायकों की टोली लेकर महाराष्ट्र से निकल गए और सीएम को पता भी नहीं चला. सवाल उठने लगे कि क्या शिव सेना शिंदे सेना बन जाएगी. एकनाथ शिंदे 40 साल तक शिवसेना के भरोसेमंद और मजबूत सिपाही रहे. लेकिन उनकी बगावत ने शिवसेना की सत्ता की बुनियाद हिला दी है.
अब भाजपा और एकनाथ शिंदे के बीच ऐसी सांठगांठ हुई कि खुद देवेंद्र फडणवीस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर एकनाथ शिंदे को महाराष्ट्र का सीएम बनाने का ऐलान कर दिया. इसके बाद एकनाथ शिंदे ने कहा की भाजपा बड़ी पार्टी है और भाजपा का बड़ा दिल भी है. कहीं न कहीं, एकनाथ शिंदे के मुख्यमंत्री बनने से उद्धव ठाकरे के रातों की नींद उड़ जाएगी. अब उन्हें सीएम की कुर्सी के बाद शिवसेना के धनुष तीर गंवाने का डर सता रहा होगा.
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