स्वामी विवेकानंद: वो महापुरुष जिन्हें 'राजनीति' में सब अपना बता रहे हैं

अपनी ओजपूर्ण वाणी से युवाओं के मार्गदर्शक बने स्वामी विवेकानंद का आज जन्मदिन है. उनके जन्मदिन को पूरा राष्ट्र ‘युवा दिवस’ के रूप में मनाता है.

Written by - Laxmi Upadhyay | Last Updated : Jan 12, 2021, 01:46 PM IST
  • स्वामी विवेकानंद का नाम इतिहास में एक विद्वान के रूप में दर्ज
  • स्वामी विवेकानंद के विचारों से प्ररित होते है लोग
स्वामी विवेकानंद: वो महापुरुष जिन्हें 'राजनीति' में सब अपना बता रहे हैं

नई दिल्ली:  भारत के युवा जि‍स महापुरुष के विचारों को आदर्श मानकर उनसे प्रेरित होते हैं,​ वो क्रांतिकारी जिसने भगवा पहन कर विश्व स्तर पर भारत का सम्मान बढ़ाया, वो संन्यासी जो इतिहास (History) में एक ऐसे विद्वान के रूप में दर्ज है, जिन्होंने मानवता की सेवा को अपना सर्वोपरि धर्म माना. उन स्वामी विवेकानंद (SwamiVivekananda) का आज ​जन्मदिन है. उन्होंने मानवता की सेवा एवं परोपकार के लिए 1897 में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की. इस मिशन का नाम विवेकानंद ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के नाम पर रखा.

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बता दें कि 12 जनवरी 1863 को कोलकाता (Kolkata) में जन्मे स्वामी विवेकानंद (SwamiVivekananda) के नाम पर बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले सियासत भी जमकर हो रही है. दरअसल यहां के समीकरण भी कुछ ऐसे हैं. मिशन बंगाल पर निकली बीजेपी के सामने जहां सत्ता में काबिज ममता बनर्जी एक चुनौती के रूप में है तो साथ ही लेफ्ट और कांग्रेस को भी उसे साइड करना पड़ेगा.

इस लड़ाई में ममता (Mamata Banerjee) को बीजेपी जहां राष्ट्रवाद से चुनौती दे रही है तो लेफ्ट की जड़ें काटने की शुरुआत उसने जेएनयू कैंपस से की. जहां 12 नवंबर को पीएम मोदी ने जेएनयू कैंपस में स्वामी विवेकानंद की मूर्ति का अनावरण किया. ये वही मूर्ति थी जो पिछले करीब दो वर्षों से कपड़े में लिपटी हुई थी. जिसका कई बार लेफ्ट समर्थकों ने विरोध भी किया. दरअसल स्वामी विवेकानंद की विचारधारा के बीजेपी जितने करीब है वामपंथी उससे उतने ही परहेज करते दिखाई देते हैं.

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वैसे राजनीति (Policits) में यूं ही कुछ नहीं होता यकीनन सियासत में ये बात सटीक बैठती है. स्वामी विवेकानंद (SwamiVivekananda) के साथ भी यही हो रहा है. आगामी विधानसभा चुनाव में बंगाल की अस्मिता का प्रतीक कहे जाने वाले विवेकानंद को सियासत में अपना अपना बताने की होड़ से मची हुई है. इसका मकसद वोटबैंक की राजनीति को साधना है.

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इसके लिए बीजेपी बंगाल में महापुरुषों का सम्मान और जय श्री राम के नारे से टीएमसी को घेर रही है. इसी के तहत दिसंबर में 2 दिन के दौरे पर गए अमित शाह ने 19 दिसंबर को अपने पहले दिन के कार्यक्रम की शुरुआत स्वामी विवेकानंद (SwamiVivekananda) को याद करके की. अपने दौरे के दूसरे दिन 20 दिसंबर को शातिकुंज पहुचकर उन्होंने रवींद्र नाथ टैगोर को नमन किया. दरअसल बीजेपी द्वारा बंगाल की संस्कृति और महापुरुषों को सम्मान देकर बंगाल की जनता का दिल जीतने की पूरी कोशिश की जा रही है.

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तो दूसरी ओर इसकी काट के लिए ममता स्वामी विवेकानंद (SwamiVivekananda) के हिंदुत्व की बात करती नजर आ रही हैं. बीते दिनों हिंदुत्व को लेकर ममता बनर्जी की ओर से बयान दिया गया. ममता बनर्जी के अनुसार वो आरएसएस को हिंदू धर्म का ठेकेदार नहीं मानती, वो स्वामी विवेकानंद के हिंदू धर्म का अनुसरण करती हैं. यानि जिन विवेकानंद के नाम पर बीजेपी द्वारा बंगाल में लेफ्ट जड़ों को कमजोर करने का दांव चला गया था वही कार्ड ममता ने उनके खिलाफ इस्तेमाल किया है. उन्होंने स्वामी विवेकानंद के हिंदुत्व की बात कहकर एक ऐसा दांव चला है जिसे खारिज करना बीजेपी के लिए भी आसान नहीं होगा. बीजेपी को बाहरी कहते हुए बंगाल की अस्मिता का कार्ड खेलने वाली ममता द्वारा विवेकानंद का उल्लेख हिंदुत्व और बंगाल की अस्मिता दोनों मोर्चों पर ममता के पक्ष को मजबूत करता दिखता है.

दरअसल पश्चिम बंगाल एक ऐसा राज्य है जहां स्थानीय संस्कृति, परंपराओं और नायकों से लोगों का भरपूर लगाव है. सियासी दल भी इसे समझते हैं. इसीलिए ममता जहां इसी फॉर्मूले पर आगे बढ़ती नजर आ रही है तो बीजेपी इसे लेकर अपनी मजबूर रणनीति बनाने में जुटी हुई है. फिलहाल चुनाव में महापुरुषों के नाम पर सियासत हो रही है सब उन्हें अपना बता रहे हैं.

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हालांकि विवेकानंद एक ऐसे महान पुरुष हैं जो आज की राजनीति के विवेक से परे हैं. उनका जीवन हम सबको एक सीख देता रहेगा.

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