नई दिल्ली: Spy Pigeon Cher Ami: राजा-महाराजाओं के दौर में कबूतर डाकिये काम किया करते थे. चाहे प्रेम पत्र ले जाना हो या शोक संदेश, कबूतर चिट्ठियां ले जाने का काम कर देते थे. धीरे-धीरे दुनिया आगे बढ़ी, कबूतर भी डाकिये से जासूस की भूमिका में आ गए. कई देशों की इंटेलिजेंस एजेंसी कबूतरों का जासूस के तौर पर इस्तेमाल करती हैं. चलिए, जानते हैं एक ऐसे जासूसी कबूतर की कहानी, जिसने 194 सैनिकों की जान बचाई थी.
194 सैनिकों की जान को था खतरा
यह प्रथम विश्व युद्ध का दौर था. उस जमाने में चेर अमी नाम का एक कबूतर खूब मशहूर था. 'चेर अमी' फ्रेंच भाषा का शब्द है, इसका अर्थ होता है 'डियर फ्रेंड'. चेर एमी एक जासूसी कबूतर था, जिसके चर्चे कई देशों तक फैले थे. 14 अक्टूबर, 1918 को चेर अमी का आखिरी मिशन था. चेर अमी को फ्रांसीसी सैनिकों की जान बचाने के लिए एक चिट्ठी डिलीवर करनी थी. दरअसल, जर्मनों के खिलाफ लड़ाई में एक घिरी फ्रांस की बटालियन के 194 सैनिकों की जान खतरे में थी.
कबूतर को गोली लगी, मगर रुका नहीं
सैनिको को बचाने के लिए ही चेर अमी एक चिट्ठी लेकर जा रहा था, तभी दुश्मनों ने गोलीबारी शुरू कर दी. चेर अमी को पैर और छाती में गोली लगी. लेकिन उसने अपनी परवाज नहीं रोकी और आखिरकार अपना संदेश पहुंचाने में कामयाब रहा. इस मिशन के दौरान लगी चोटों से वह उबर नहीं पाया और 13 जून, 1919 को चेर की मृत्यु हो गई. मरणोपरांत चेर अमी को कई पुरस्कार मिले. किसी भी बहादुर नायक को दिए जाने वाला पुरस्कार फ्रेंच क्राइक्स डी गुएरे विद पाम से भी चेर को सम्मानित किया गया.
कैमरे फिट किए जाते थे
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट बताती है कि कबूतर ऐसा पक्षी है, जिसको इतिहास में भी जासूसी के लिए इस्तेमाल किया जाता था. अंतररराष्ट्रीय जासूस संग्रहालय की रिपोर्ट कहती है कि पहले विश्व युद्ध के दौरान कबूतरों पर छोटे फिट किए जाते थे, फिर उन्हें दुश्मन के इलाके में उड़ने के लिए छोड़ दिया जाता था. छोटे कैमरे से दुश्मन के क्षेत्र की फोटोज क्लिक हो जाती थीं. एक तय समय के बाद कबूतर वहीं लौट आता था, जहां से उसे उड़ाया जाता था. रिपोर्ट बताती है कि 95% कबूतर जासूसी कार्यों में सफल रहे.
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