Delhi Riot 2020: 2020 के दिल्ली दंगों के मामले में गुरुवार को दिल्ली हाई कोर्ट में सुनवाई हुई जिसमे उमर खालिद ने अदालत से कहा कि किसी व्हाट्सऐप समूह का हिस्सा बनने या किसी विरोध- प्रदर्शन के लिए बैठक में हिस्सा लेने से आतंकवाद नहीं होता है, और जब इसी केस में उनके सह-आरोपी देवांगना कालिता, नताशा और आसिफ को बेल मिली तो उन्हें क्यों नहीं?
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नई दिल्ली: JNU के पूर्व छात्र अध्यक्ष उमर खालिद ने गुरुवार को दिल्ली दिल्ली हाई कोर्ट में दलील दी कि किसी व्हाट्सऐप ग्रुप में उनकी मौजूदगी मात्र से उनके खिलाफ कोई आपराधिक मामला दर्ज करने की बुनियाद नहीं हो सकती है, न ही किसी तरह का विरोध-प्रदर्शन करने या बैठकों में हिस्सा लेने को आतंकवाद माना जा सकता है, लेकिन उनके मामले में पुलिस ऐसा ही मानती है.
खालिद के वकील त्रिदीप पायस ने जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शालिंदर कौर की बेंच के सामने दलील दी और फरवरी 2020 के दंगों से संबंधित गैरकानूनी गतिविधियां (निवारण) कानून (UAPA) मामले में अपने मुवक्किल के लिए जमानत की अपील की. वकील पायस ने अभियोजन पक्ष के इस दावे की मुखालफत की कि खालिद ने स्टूडेंट्स को जमा करने और भड़काने और 'विघटनकारी' चक्का जाम की प्लानिंग करने के लिए व्हाट्सऐप पर 'सांप्रदायिक' ग्रुप बनाए थे. वकील ने कहा कि उमर खालिद ऐसे किसी ग्रुप का एक्टिव मेंबर भी नहीं रहा. पुलिस की दलीलों पर रद्देअमल देते हुए पायस ने तर्क दिया कि खालिद को जबरन ग्रुप में जोड़ा गया है. खालिद ने उस ग्रुप में अपनी तरफ से एक भी संदेश पोस्ट नहीं किया है. उसने कोई चैट भी नहीं किया. उमर खालिद को किसी ने इस मामले में फंसाया है. किसी ग्रुप में शामिल होना किसी के आपराधिक गलती होने या करने का संकेत नहीं है. वकील ने कहा, “मेरे मुवक्किल के खिलाफ यूएपीए के तहत कोई अपराध नहीं बनता है. पुलिस विरोध-प्रदर्शन और बैठक में हिस्सा लेने को ही आतंकवाद के बराबर बता रही है."
बाकी आरोपियों को बेल, खालिद को जेल
उमर खालिद के वकील पायस ने कहा कि सह-आरोपी देवांगना कालिता, नताशा, और आसिफ इकबाल तन्हा भी ऐसे सोशल ग्रुप का हिस्सा थे और उन पर हिंसा में “कहीं ज्यादा गंभीर इल्ज़ाम ” थे, लेकिन उन्हें मामले में जमानत दे दी गई. वकील ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया और कहा कि अगर समानता के आधार पर कोई मामला बनता है, तो आप इसे बना सकते हैं. वकील ने आगे दलील दी कि मुकदमे में देरी भी जमानत देने की एक वजह बनती है, जिस पर विचार किया जाना चाहिए. हिरासत की लंबी अवधि को ध्यान में रखा जा सकता है. अभी आरोप तय नहीं किए गए हैं और मुकदमा शुरू नहीं हुआ है. गौरतलब है कि सितंबर 2020 में दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए छात्र नेता उमर खालिद ने दूसरी बार मामले में जमानत देने से इनकार करने वाले लोअर कोर्ट के आदेश को चुनौती दी है. इस मामले में अगली सुनवाई चार मार्च को होगी.
अभियोजन की दलील हो चुकी है पूरी
गौरतलब है कि उमर खालिद के अलावा, कई दीगर लोगों पर फरवरी 2020 के दंगों के सिलसिले में मामला दर्ज किया गया था, जिसमें 53 अफराद मारे गए थे और 700 से ज्यादा घायल हुए थे. नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और राष्ट्रीय नागरिकता पंजी (NRC) के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन के दौरान पूर्वी दिल्ली में हिंसा भड़क उठी थी. इस मामले में हाई कोर्ट अभी आरोपी व्यक्तियों के वकील द्वारा खंडन तर्क सुन रहा है. दिल्ली पुलिस के विशेष लोक अभियोजक ने पिछली सुनवाई में पहले ही अपने तर्क अदालत के सामने रख दिया है और उनकी दलील पूरी हो चुकी है .