Good Friday: आज दुनियाभर में ईसाई समुदाय गुड फ्राइडे (Good Friday) मना रहा है. ये दिन उनके लिए क्यों खास है और इस दिन को लेकर इस्लाम की क्या मान्यताएं हैं? ये सब जानने के लिए पढ़िए पूरी खबर
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Good Friday Story: आज दुनिया भर में ईसाई धर्म के लोग गुड फ्राइडे (Good Friday) मना रहे हैं. ईसाई मान्यता के मुताबिक 'गुड फ्राइडे' वह दिन है जब ईसा मसीह को फिलिस्तीन के शहर यरूशलम में सूली पर चढ़ाया गया था. दुनिया में अलग-अलग तरीकों से यह दिन मनाया जाता है लेकिन यरूशलम में इस दिन पारंपरिक तौर पर जुलूस निलकता है और हजारों की तादाद में ईसाई मज़हब को मानने वालो लोग इसमें शिरकत करते हैं.
पत्थरों से बने शहर की प्राचीन संकरी गलियों से गुजरते जुलूस में शामिल कुछ लोग ने अपने कंधों पर लकड़ी की बनी सूली (क्रास का निशान) लिए हुए रहते हैं. ईसाई परंपराओं में, 'गुड फ्राइडे' के इस जुलूस के पारंपरिक मार्गों को 'वाया डोलोरोसा' के नाम से जाना जाता है, जिसका अर्थ है 'दुख का रास्ता'. परंपराओं के मुताबिक 'गुड फ्राइडे' का जुलूस उन्हीं रास्तों से गुजरता है, जहां से दो हजार साल पहले ईसा मसीह सूली पर चढ़ते हुए गुजरे थे.
'गुड फ्राइडे' के मौके पर यरूशलम में सिक्योरिटी के सख्त इंतजाम किए जाते हैं और जुलूस के रास्तों पर इस्राइली फौजियों को तैनात किया जाता है. जुलूस अपने पारंपरिक मार्गों से गुजरा और 'चर्च ऑफ द होली सेपल्चर' पर जाकर खत्म होता है. ईसाई मान्यता के मुताबिक यहीं पर ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाया गया था. ईसाई परंपराओं के अनुसार इसी स्थान पर सूली पर चढ़ाए जाने के बाद ईसा मसीह फिर से जीवित हो गए थे, जिसकी याद में श्रद्धालु यहां 'ईस्टर संडे' का त्योहार मनाते हैं.
हालांकि इस्लाम को मानने वालों लोग इस घटना को कुछ अलग तरीके कहते हैं. सबसे पहले तो यह कि इस्लाम के मानने वाले लोग इसी मसीह को "हजरत ईसा अलैहिस्सलाम" कहकर संबोधित करते हैं और इनको भी इस्लाम में अन्य पैगंबरों की तरह एक पैगंबर मानते हैं. दरअसल इस्लामी मान्यताओं के मुताबिक दुनिया 1 लाख 24 हजार पैगंबर आए थे. उन्हीं में से एक हजरत ईसा भी हैं और आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब हैं.
इस्लामी मान्यताओं के मुताबिक हजरत ईसा को अल्लाह की तरफ से कई चमत्कारों से नवाज़ा गया था. जिनमें सबसे पहला तो यह है कि हजरत ईसा को बिना पिता के पैदा किया गया था. उनका एक और चमत्कार यह भी था कि जब वो बेजान चीजों में जानदार बना दिया करते थे. इसके अलावा जो लोग देख नहीं सकते थे उनकी रौशनी भी वापस ला दिया करते थे. कई संगीन बीमरियों को हाथ लगाकर ठीक करने देना और पानी चलने जैसे हैरान कर देने वाला चमत्कारों से हजरत ईसा को नवाजा गया था.
हालांकि यहूदी उनके चमत्कारों पर यकीन नहीं करते थे, जबकि वो उन चमत्कारों को अपनी आंखों से भी देखते थे. हजरत ईसा का कोई घर-बार भी नहीं था. वो शहर-शहर जाकर अल्लाह के दीन को फैलाने का कम किया करते थे. उनकी शोहरत में दिन-ब-दिन इज़ाफा होता जा रहा था. जिससे उनके मानने वालों में तेजी के साथ इज़ाफा होता जा रहा था. कहा जाता है कि उस जमाने में पलातीस नाम का एक शख्स हुकूमत किया करता था. जिसके पास जाकर यहूदियों ने हजरत ईसा की शिकायत की और कहा कि उनके मानने वालों तेजी के साथ इज़ाफा होता जा रहा है.
शिकायत सुनने के बाद बादशाह ने हजरत ईसा को कत्ल करने और सूली पर चढ़ाने का हुक्म सुना दिया. हैरानी की बात यह है कि हजरत ईसा के चंद करीबियों में एक शख्स गद्दार भी था जो यहूदियों के लिए काम कर रहा था. ऐसे में उसको राजा ने किसी चीज का लालच देकर हजरत ईसा को शहीद करना था या दूसरों से करवाना था. चंद सिक्कों के लिए बिकने वाला शख्स चंद यहूदियों और बादशाह के सिपाहियों को हजरत ईसा के ठिकाने के बाहर खड़ा कर दिया और खुद अंदर चला गया. इस्लामी मान्यताओं के मुताबिक उसी वक्त अल्लाह ने हजरत को ईसा जिंदा आसमान की तरफ उठा लिया था. जिसे वहां मौजूद उस गद्दार ने भी देखा. वो काफी हैरान था. हैरानी की बात यह है कि अल्लाह ने उस शख्स को ही हजरत ईसा की हमशक्ल बना दिया था. अपने आपको हजरत ईसा की शक्ल में देखकर वो परेशान हुआ और बाहर खड़े सैनिकों के पास गया. यहां खड़े सैनकों ने समझा कि यह हजरत ईसा हैं और उन्होंने उस शख्स को पकड़ लिया.
हालांकि इस दौरान वो शख्स उन्हें चिल्ला चिल्लाकर यह बता रहा था कि मैं तुम्हारा साथी हूं लेकिन उसकी किसी ने ना सुनी और कहा कि ऐ ईसा तूने हमारे साथी को कत्ल कर दिया और अब हमें धोखा देना चाहते हैं. सिपाहियों ने हजरत ईसा के हमशक्ल को पकड़ा और रस्सी में जकड़कर उस सलीब यानी सूली तक ले आए जिस पर वो हजरत ईसा को चढ़ाना चाहते थे और उस शख्स को कत्ल कर दिया. इस्लामी मान्यताओं को मानना है कि हजरत ईसा कयामत से पहले फिर से दुनिया में आएंगे.
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