UCC In Uttrakhand: उत्तराखंड में समान नागरिक सहिंता लागू हए दिन हो गए हैं. लेकिन इस बीच लोगों का इसे लेकर आम नागरिकों की बहुत ही ठंडी प्रतिक्रिया दिख रही है. नागरिकों में इसे लेकर कोई उत्साह नहीं है. वो पुराने ढर्रे पर चल रहे हैं. एक्सपर्ट बता रहे हैं कि इस कानून का हाल भी CAA और तीन तलाक जैसे कानून की तरह हो सकता है.
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देहरादून: देश में समान नागरिक सहिंता भाजपा के मूल अजेंडे का हिस्सा है. भाजपा हर चुनाव में इस मुद्दे को भुनाकर हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण करने की कोशिश करती है. पिछले 27 जनवरी को भाजपा शासित उत्तरखंड में यूसीसी लागू कर दिया गया. उत्तराखंड स्वतंत्र भारत में समान नागरिक सहिंता को लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है. उत्तरखंड के बाद अब गुजरात सरकार ने भी राज्य में समान नागरिक सहिंता लागू करने के लिए एक 5 सदस्यीय कमिटी का गठन किया है, जो अगले 45 दिनों में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपेगी.
१० दिनों में हुए सिर्फ एक रजिस्ट्रेशन
उम्मीद की गई है कि यूसीसी के जरिए उत्तराखंड में धर्म और लिंग से ऊपर उठकर हर नागरिक के लिए विवाह, तलाक और संपत्ति जैसे विषयों पर समान कानून लागू हो गया है. सरकार ने कहा है की UCC के तहत अब राज्य में विवाह, तलाक और संपत्ति के मामलों के अलावा 'लिव-इन' संबंधों को भी अनिवार्य ऑनलाइन पंजीकरण करना होगा. इसके लिए एक पोर्टल की भी शुरुआत की गई थी. लेकिन कानून लागू होने के बाद 10 दिन में सरकारी पोर्टल पर सिर्फ एक 'लिव-इन' संबंध रजिस्टर्ड हुआ है. हालांकि, अफसरों ने बुधवार को दावा किया है कि अनिवार्य पंजीकरण के लिए 'लिव-इन' युगलों से पांच आवेदन मिले हैं, उनमें से एक का रजिस्ट्रेशन किया जा चुका है, जबकि चार के आवेदन का सत्यापन किया जा रहा है. वहीँ, उत्तराखंड के अपर सचिव आईटी नितिका खंडेलवाल ने दावा किया है कि अभी तक पूरे प्रदेश में तकरीबन 1 हजार एप्लीकेशन आई है, जिसमें मैरिज रजिस्ट्रेशन के साथ में कई दूसरे तरह के आवेदन हैं. रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया में वक्त लगता है.
'लिव-इन' पंजीकरण न कराने पर छह माह कैद और 25 हज़ार तक जुर्माना
यूसीसी कानून के मुताबिक, अगर 'लिव-इन' में रहने वाला कपल अपने संबंध की शुरुआत करने के एक माह के अन्दर पंजीकरण के लिए आवेदन नहीं करते तो उन्हें तीन माह तक की कैद या 10,000 रुपये तक जुर्माना या दोनों से की सजा हो सकती है. अगर नोटिस जारी होने के बाद भी 'लिव-इन' युगल अपना पंजीकरण नहीं कराते हैं, तो उन्हें छह माह तक की कैद, 25 हजार रुपये तक का जुर्माना या दोनों से की सजा हो सकती है. इन प्रावधानों के बाद भी प्रदेश में कोई लिव इन कपल खुलकर रजिस्ट्रेशन कराने सामने नहीं आ रहा है. 'लिव-इन' संबंधों के अनिवार्य पंजीकरण वाले प्रावधान की इस आधार पर आलोचना की गयी है कि इससे लोगों की निजता के अधिकार का उल्लंघन होगा.
राज्य सरकार का राजनीतिक एजेंडा
उत्तराखंड हाई कोर्ट के सीनियर वकील कार्तिकेय हरि गुप्ता ने लिव इन कपल के रजिस्ट्रेशन को 'बेडरूम में झांकने' वाला कदम बताया है. उन्होंने कहा है कि देश के संविधान निर्माताओं ने कभी ऐसी कल्पना भी नहीं की होगी कि एक आज़ाद देश में नागरिकों को ऐसा दिन भी देखना होगा. हाई कोर्ट के एक दूसरे वकील वकील दुष्यंत मैनाली ने कहा, ''यूसीसी को लेकर उत्तरखंड के लोगों में शुरुआत में उतना उत्साह नहीं दिखायी दे रहा है. इससे साफ़ ज़ाहिर होता है कि वे इसके लिए बहुत उत्साहित नहीं हैं. अगर लोगों में उत्साह होता तो इसे लागू करने का समर्थन करने वाले लोग कम से कम पंजीकरण के लिए आवेदन करने ज़रूर आगे आए होते.'' मैनाली ने कहा, ''लोगों की इसके प्रति शुरुआती प्रतिक्रिया देखकर लगता है कि यूसीसी लोगों के विचार से ज्यादा राज्य सरकार का राजनीतिक एजेंडा है.''
मुसलमान मानने को तैयार नहीं UCC के नियम
उत्तराखंड मुस्लिम सेवा संगठन के सदर नईम ने कहा, "जिस तरह से उत्तराखंड में यूसीसी को लागू किया गया है, इससे कोई फर्क देखने को नहीं मिल रहा है. यहाँ हिन्दू- मुसलमान सभी अपनी रीति-रिवाज के हिसाब से काम कर रहे हैं. इसे लागू होने के बाद मुसलमान इसके खिलाफ विरोध-प्रदर्शन करने के लिए राज्य सरकार से अनुमति मांग रहे हैं. वो इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की भी बात कर चुके हैं. मुस्लिम समाज के लोगों का कहना है कि वे बाबा साहब अंबेडकर के संविधान को मानते हैं. उनको नए कानून से कोई लेना-देना नहीं है. वे अपने कानून के हिसाब से चलेंगे.
बैन के बाद नहीं कम हुए तीन तलाक के मामले
इस पूरे मामले में सुप्रीम कोर्ट की सीनियर वकील ममता शर्मा कहती हैं, " UCC में अभी बहुत सारी कमियां है. इसके कई प्रावधान नागरिकों के मौलिक अधिकारों की हनन करते हैं. सुप्रीम कोर्ट में ये कानून नहीं टिक पायेग. इसमें सुधार करना होगा. नहीं तो इसका हाल भी देश में पहले से नागरिक समाज के विरोध के बावजूद बने और लागू CAA और तीन तलाक कानून जैसा हाल होगा. सरकार इसे लागू ही नहीं करा पाएगी. इसे लागू करने में कई व्यावहारिक दिक्कतें पैदा हो सकती है. CAA और तीन तलाक कानून के बावजूद ने तो बहार से आये विदेशी नागरिकों को आसानी से भारत की नागरिकता मिल पा रही है, और न ही तीन तलाक कानून पर बैन के बाद इसमें कोई कमी आयी है. अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों से रिकॉर्ड माँगा है कि उनके यहाँ इस कानून को बनने के बाद तीन तलाक के कितने मामले दर्ज हुए हैं और कितने पतियों को इस कानून के तहत सजा मिली है?