हूती विद्रोहियों के हमले से भारत को रोज करोड़ों का नुकसान हो रहा है. हूती विद्रोहियों ने वैश्विक कारोबार के साथ-साथ भारत के निर्यात को प्रभावित किया है. चालू वित्त वर्ष में भारत के कुल निर्यात में 30 बिलियन डॉलर तक नुकसान हो सकता है. लाल सागर से होने वाले कारोबार के प्रभावित होने से भारत के कुल एक्सपोर्ट घट सकता है.
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Red Sea Attack Effect: हूती विद्रोहियों का भारत के कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन लाल सागर में उन्होंने से जो उत्पात मचा रखा है,उससे भारत को रोज करोड़ों का नुकसान हो रहा है. हूती विद्रोहियों ने वैश्विक कारोबार के साथ-साथ भारत के निर्यात को प्रभावित किया है. अगर ऐसा कुछ और दिन चलता रहा तो चालू वित्त वर्ष में भारत के कुल निर्यात में 30 बिलियन डॉलर तक नुकसान हो सकता है. लाल सागर से होने वाले कारोबार के प्रभावित होने से भारत के कुल एक्सपोर्ट में 30 अरब डॉलर तक की गिरावट आ सकती है.
लाल सागर में हमले का असर
रिसर्च एंड इंफोर्मेंशन सिस्टम फॉर डिवेलपिंग कंट्रीज की रिपोर्ट के मुताबित लाल सागर में हूतियों के हमले के बाद निर्यात प्रभावित होने से सालाना आधार पर 6.7 फीसदी की गिरावट हो सकती है. बीते साल भारत का निर्यात 451 अरब करोड़ डॉलर का था, लेकिन जिस तरह से लाल सागर में हूती विद्रोहियों का आतंक बढ़ रहा है निर्यात पर असर पड़ सकता है. भारत को सामान भेजने से लेकर मंगवाने में परेशानी हो रही है. हमले के डर से शिपिंग कंपनियां लाल सागर के रास्ते से गुजरना नहीं चाह रही है.
शिपिंग कंपनियां बना रही दूरी
शिप ब्रोकर क्लार्कसन रिसर्च सर्विसेज लिमिटेड ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि स्वेज नहर के गुजरने वाले जहाजों की संख्या में दिसंबर के पहले पखवाड़े की तुलना में 44 फीसदी की कमी देखने को मिली है. वहीं जनवरी के पहले हफ्ते में इस रास्ते से 25 लाख टन समानों का एक्सपोर्ट हुआ जो दिसंबर के पहले हफ्ते में 40 लाख टन था. जाहिर है कि शिपिंग कंपनियां हूतियों के हमले की डरी हुई है और लाल सागर से दूरी बना रही हैं.
लाल सागर का विक्लप
भारत के लिए लाल सागर यूरोप, अमेरिका, मध्य पूर्व अफ्रीका, एशिया में माल भेजने का प्रमुख्. मार्ग है. लाल सागर में हूतियों के हमले के चलते शिपिंग कंपनियों के पास सिर्फ दो ही विक्लप है. या तो उन्हें कारोबार रोकना पड़ रहा है या फिर लंबा रास्ता लेना पड़ रहा है. दूसरे रास्ते के चलते शिपिंग कंपनियों की लागत 30 से 40 फीसदी और शिपिंग में लगने वाला वक्त भी 10 से 15 दिन बढ़ जाता है. लागत बढ़ने से वैश्विक महंगाई का खतरा बढ़ रहा है.