पुराने जमाने में बच्चों को दूध पिलाने के बाद राख क्यों चटाई जाती थी? जानिए इसके पीछे का साइंस
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पुराने जमाने में बच्चों को दूध पिलाने के बाद राख क्यों चटाई जाती थी? जानिए इसके पीछे का साइंस

राख का यूज अब इतना नहीं होता, सोप और डिटर्जेंट ने इसे रिप्लेस कर दिया है, लेकिन क्या आप जानते हैं ये बैक्टीरिया के खात्मे में कितना अहम रोल अदा कर सकता है?

पुराने जमाने में बच्चों को दूध पिलाने के बाद राख क्यों चटाई जाती थी? जानिए इसके पीछे का साइंस

Ashes Benefits: पहले के जमाने में राख आसानी से मिल जाता था, क्योंकि ज्यादातर घरों में लकड़ी या पुआल का चूल्हा जलता था, लेकिन वक्त के साथ इसकी मौजूदगी और इस्तेमाल कम होता गया. अब अधिकतर किचन में गैस सिलेंडर वाला स्टोव यूज होता है. यही वजह है कि हम धीरे-धीरे इस बेहतरीन चीज से दूर होते जा रहे हैं.

राख का होता था खूब इस्तेमाल
कई दशक पहले भारत के कई इलाकों में राख की मदद से बर्तन और हाथ साफ किए जाते थे. इसके अलावा बच्चे के दूध पीते ही राख चटाने की परंपरा थी. हालांकि मार्केटिंग के जरिए राख को अशुद्ध बताया गया और अब क्लीनिंग के लिए डिटर्जेंट और सोप लिक्विड का यूज बढ़ा दिया गया. अब नई पीढ़ी के ज्यादातर लोगों को राख इस्तेमाल करने के पीछे के साइंस की जानकारी नहीं है. 

क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
मेरठ की चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर संजीव कुमार शर्मा (Professor Sanjeev Kumar Sharma) के नेतृत्व में अभिषेक शर्मा (Abhishek Sharma) द्वारा विज्ञान की कसौटी पर कसी राख की ताकत को साउथ कोरिया (South Korea) के इंटरनेशनल जर्नल 'एडवांसेज इन नैनो साइंस' (Advances in Nanoscience) और 'नैनो मैटेरियल' (Nanomaterial) जर्नल ने पब्लिश किया है. राख पर रिसर्चर्स को साल 2023 में कोरियन और 2024 में भारतीय पेटेंट भी मिल गया है. राख ने खतरनाक बैक्टिरियाज को नॉर्मल टेम्प्रेचर 37 डिग्री सेल्सियस पर ही खत्म कर दिया.

साधु शरीर पर क्यों लगाते हैं राख?
महाकुंभ के दौरान आपने देखा होगा कि नागा साधु स्नान से पहले अपने शरीर में भस्म (राख) लगाते हैं. दरअसल राख में सिलिका होता है जिससे ठंडे पानी में नहाने से अचानक झटका नहीं लगता. साथ ही इससे उनके शरीर को ज्यादा सर्दी महसूस नहीं होती और बॉडी की एनर्जी भी बाहर नहीं निकलती.

बच्चों को दूध पिलाने के बाद क्यों चटाई जाती है राख?
कई बार पुरानी परंपराओं में वैज्ञानिक पहलू छिपे होते थे, जिसकी जानकारी आम लोगों को कम होती थी. बच्चे को दूध पिलाने के आधे घंटे के अंदर मुंह में बैक्टीरिया पनपने लगते हैं, यही वजह है कि उन्हें राख चटाई जाती थी, क्योंकि ऐसा करने से मुंह का नेचर अल्कलाइन हो जाता था. राख में किसी तरह का केमिकल नहीं होता और इससे नेचुरल तरीके से सफाई हो जाती है. इसलिए बर्तन और दांत साफ करने में इसका इस्तेमाल होता था.

Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में घरेलू नुस्खों और सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.

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