Opinion: बिहार में बड़ी टूट के मुहाने पर खड़ी है कांग्रेस! पार्टी में कभी भी हो सकता है सियासी विस्फोट
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Opinion: बिहार में बड़ी टूट के मुहाने पर खड़ी है कांग्रेस! पार्टी में कभी भी हो सकता है सियासी विस्फोट

कांग्रेस पार्टी ने हाल ही में विधानमंडल दल के नेता को बदल दिया है. अब इस कुर्सी पर कदवा विधायक डॉ शकील अहमद खान को बिठाया गया है. इससे पहले यह जिम्मेदारी भागलपुर विधायक अजीत शर्मा निभा रहे थे. 

बिहार कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह

Bihar Congress: कर्नाटक जीत से उत्साहित कांग्रेस पार्टी ने अब 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है. इसके तहत पार्टी अब बिहार में नए सिरे से संगठन को खड़ा करने में लग गई है. पार्टी ने हाल ही में विधानमंडल दल के नेता को बदल दिया है. अब इस कुर्सी पर कदवा विधायक डॉ शकील अहमद खान को बिठाया गया है. इससे पहले यह जिम्मेदारी भागलपुर विधायक अजीत शर्मा निभा रहे थे. ये निर्णय पूरी तरह से आलाकमान की ओर से लिया गया है क्योंकि इस नए नेता के चुनाव के वक्त 11 विधायकों ने तो बैठक में हिस्सा ही नहीं लिया था. 

इतना ही नहीं पार्टी की ओर से जब प्रदेश पार्टी मुख्यालय सदाकत आश्रम में शकील अहमद खान की ताजपोशी की गई तो उस बैठक से भी अजीत शर्मा और अन्य 10 विधायक अनुपस्थित रहे. विधायकों की नाराजगी बता रही है कि पार्टी एक बड़े ज्वालामुखी के मुंह पर बैठी है और इसमें से कभी भी सियासी लावा फूट सकता है. अजीत शर्मा को हटाने को लेकर पार्टी का तर्क है कि जातीय समीकरण में मेल बिठाने के लिए ऐसा किया गया है. पार्टी का तर्क है कि प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह और विधायक दल के नेता अजीत शर्मा दोनों भूमिहार जाति से आते हैं, इसलिए एक को बदल दिया गया है.

पार्टी के इस तर्क पर भी अजीत शर्मा की कोई प्रतिक्रिया नहीं है और ना ही उन्होंने अभी तक नए विधायक दल के नेता को बधाई दी है. इससे पहले पार्टी ने पूरे प्रदेश के 38 जिलों के 39 जिलाध्यक्षों की नियुक्ति की है, जिसमें सवर्णों का बोलबाला है. कुल 39 जिलाध्यक्षों में से करीब 66 प्रतिशत अगड़ी जातियों से हैं. 39 जिलों में से 11 भूमिहार, 8 ब्राह्मण, 6 राजपूत, 5 मुस्लिम, 4 यादव, 3 दलित, 1 कुशवाहा और 1 कायस्थ जाति से हैं. इससे तो लग रहा है कि पार्टी का पूरा फोकस सवर्णों पर है. इस लिहाज से अजीत शर्मा को कुर्सी से उतारने के पीछे कोई अन्य वजह भी होगी. 

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वहीं ये घटनाक्रम कुछ-कुछ 2018 की तरह ही लगता है. उस वक्त पार्टी आलाकमान ने प्रदेश अध्यक्ष पद से अशोक चौधरी को हटाया था. इसका नतीजा ये हुआ था कि अशोक चौधरी अपने साथ तीन अन्य एमएलसी लेकर जेडीयू में चले गए थे. ऐसे वक्त में संभव है कि अशोक चौधरी की तरह अजीत शर्मा भी नए ठिकाने की तलाश में लगे हों. वैसे भी अगले साल लोकसभा चुनाव होने हैं, तो भगदड़ तो देखने को मिलेगी ही. 

(ये लेखक के निजी विचार हैं...) 

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