Bihar News: लालू-तेजस्वी के सामने यह समस्या आ गई कि पहले वह बिहार कांग्रेस नेताओं से डील आसानी से कर लेते थे. मगर, अब कांग्रेस के नए प्रभारी कर्नाटक के रहने वाले हैं और हिंदी भाषी नहीं हैं, जो अपनी रणनीति के लिए जाने जाते हैं. वहीं, माना जाता है कि लालू यादव और तेजस्वी यादव की छत्र छाया में बिहार कांग्रेस के नेता रहते हैं.
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Bihar Politics: कांग्रेस दिल्ली चुनाव के बाद फुल फॉर्म में बैंटिंग कर रही है. इंडिया गठबंधन के बाकी साथी अब कांग्रेस की अटैकिंग बल्लेबाजी से बाउंसर वाली गेंदबाजी करने की सोच रहे हैं! बाकी साथी दल कांग्रेस को सुरक्षात्मक बैटिंग करने की सलाह दे रहे हैं, लेकिन आलाकमान है कि अब वह रुकने का नाम नहीं ले रही है. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि दिल्ली आम आदमी पार्टी की विधानसभा चुनाव में हार कांग्रेस की वजह से बताई जा रही है. आप इंडिया गठबंधन का एक अहम सदस्य है. मगर अरविंद केजरीवाल की हार के बाद भी कांग्रेस आक्रामक है. खैर, अब कांग्रेस बिहार में भी इसी शैली को बनाए रखना चाहती है. इसकी बानगी तब देखने को मिली जब कांग्रेस ने कर्नाटक के कृष्णा अल्लावरु को बिहार कांग्रेस का प्रभारी बनाया.
वहीं, कांग्रेस बिहार विधानसभा चुनाव में 70 सीटों पर चुनाव लड़ने का मन बना रही है. कांग्रेस को खुद पर भरोसा है, इसलिए बिहार कांग्रेस ने पहले ही साफ कर दिया है कि इस साल होने विधानसभा चुनाव में पार्टी 70 से कम सीटों पर समझौता नहीं करेगी. इंडिया गठबंधन में कांग्रेस खुद को बिहार में राजद के बाद सबसे अहम मानती है. इसलिए वह सीटों के बंटवारों में किसी समझौते के मूड में नहीं दिखाई दे रही है.
अब जब कांग्रेस ने बिहार के लिए पार्टी का प्रभारी कन्नड़ भाषी कृष्णा अल्लावरु से को बनाया है तो सियासी हलकों में इस बात की चर्चा होने लगी है कि हिंदी पट्टी वाले लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव कैसे इनसे गठबंधन में सीटों की डील कर पाएंगे. इसके पीछे का तर्क ये दिया जा रहा है कि बिहार में कांग्रेस नेताओं और लालू यादव के बीच अच्छी बॉन्डिंग बन गई है. राजद हमेशा कांग्रेस को अपने से पीछे रखती है. माना जाता है कि लालू यादव और तेजस्वी यादव की छत्र छाया में बिहार कांग्रेस के नेता रहते हैं. लालू-तेजस्वी जिस लाइन पर चलने को बोलते हैं उसी लाइन पर वह चल पड़ते हैं.
याद कीजिए जब बिहार विधनासभा चुनाव 2020 में कांग्रेस 70 सीटों पर लड़ी और केवल 19 सीटों पर जीत हासिल कर सकी, जिसकी वजह से माना गया कि कांग्रेस और राजद में कड़वाहट आ गई है. इसी बीच तब कांग्रेस के दलित नेता भक्त चरण दास ने कहा था कि राजद और बीजेपी का गठबंधन हो सकता है. इसके बाद लालू प्रसाद यादव ने भक्त चरण दास को भकचोन्हर (बेवकूफ) कहा था. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि बिहार के कांग्रेस नेताओं को लालू यादव कितनी तरजीह देते हैं.
अब इसे इस तरह से समझिए, बिहार कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह को लालू यादव का करीबी माना जाता है. वहीं, इससे पहले बिहार कांग्रेस के प्रभारी मोहन प्रकाश थे, जिनकी अगुवाई में कांग्रेस को बिहार में लोकसभा चुनाव में 40 सीटों में से 9 सीट इंडिया गठबंधन में मिली थी. हालांकि, लोकसभा में चुनावी सफलता राजद से कांग्रेस की बेहतर रही और 9 में 3 सीटों पर जीत हासिल की. वहीं, राजद 23 सीटों पर लड़ी और महज 4 सीटों पर जीत हासिल की थी. इस लिहाज कांग्रेस पर विधानसभा चुनाव 2020 में महागठंबधन की हार का कारण माना गया था, लेकिन कांग्रेस ऐसा नहीं मानती.
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बिहार कांग्रेस को एक नई दिशा देने के लिए अब कृष्णा अलावरु को आलाकमान ने भेजा है. कांग्रेस नेतृत्व ने कृष्णा अल्लावरू पर भरोसा जताते हुए यह जिम्मेदारी सौंपी है. कांग्रेस का रुख जिस तरह से दिख रहा है उससे साफ है कि वह 70 सीट से कम में नहीं मानने वाली है. लालू-तेजस्वी के सामने यह समस्या आ गई कि पहले वह बिहार कांग्रेस नेताओं से डील आसानी से कर लेते थे. मगर, अब कांग्रेस के नए प्रभारी कर्नाटक के रहने वाले हैं और हिंदी भाषी नहीं हैं, जो अपनी रणनीति के लिए जाने जाते हैं. ऐसे में उनसे डील करना राजद के लिए आसान नहीं होगा.
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