पश्चिम चंपारण के लौकरिया गांव की आदिवासी महिलाएं जलाशयों के किनारे उगने वाले पटेर से इको-फ्रेंडली घरेलू वस्तुएं बना रही हैं. इन उत्पादों की बढ़ती मांग के कारण वे मजदूर से मालिक बन रही हैं और उनकी आय 100 रुपये से बढ़कर 1000 रुपये प्रतिदिन हो गई है.
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बिहार के पश्चिम चंपारण जिले के लौकरिया गांव की महिलाएं आत्मनिर्भरता की मिसाल बन रही हैं. एक समय में नक्सल प्रभावित यह इलाका अब महिलाओं के श्रम और हुनर की बदौलत नई पहचान बना रहा है. यहां की आदिवासी महिलाओं ने हस्तकला को अपनाकर अपनी किस्मत बदल डाली है. जलाशयों के किनारे उगने वाले पटेर (एक प्रकार की घास) से घरेलू उपयोग की वस्तुएं बनाकर वे न केवल आत्मनिर्भर बन रही हैं, बल्कि अपने परिवारों की आर्थिक स्थिति को भी मजबूत कर रही हैं.
पटेर से बन रही इको-फ्रेंडली वस्तुएं
लौकरिया की महिलाएं पटेर से मोढ़ा, गुलदस्ता, चटाई, टोपी, बैग और पर्स जैसी इको-फ्रेंडली वस्तुओं का निर्माण कर रही हैं. इन उत्पादों की मांग पड़ोसी देश नेपाल से लेकर रांची और पटना तक बढ़ती जा रही है. इनके बनाए उत्पादों की गुणवत्ता और कारीगरी ने इन्हें देश की राजधानी दिल्ली में आयोजित एक प्रदर्शनी में स्थान दिलाया है. इससे इन महिलाओं को आत्मनिर्भर भारत और लोकल फॉर वोकल अभियान से जुड़ने का अवसर मिला है.
महिला सशक्तिकरण में हरेंद्र महतो की अहम भूमिका
इस सफलता के पीछे स्थानीय प्रेरक और संचालक हरेंद्र प्रसाद महतो की अहम भूमिका रही है. उन्होंने नेपाल से प्रशिक्षक अनीता चौधरी को बुलाया, जो महिलाओं को पटेर से सामान बनाने की ट्रेनिंग दे रही हैं. 16 से 25 महिलाओं के समूह को अलग-अलग शिफ्ट में प्रशिक्षण देकर उन्हें इस कला में पारंगत किया जा रहा है. हरेंद्र महतो ने पहले भी हस्तकरघा उद्योग में सैकड़ों महिलाओं को रोजगार से जोड़ा है और अब वे महिलाओं को मालिक बनने की राह दिखा रहे हैं.
मजदूरी से मालिक बनने का सफर
कभी खेतों में 100 रुपये की मजदूरी करने वाली महिलाएं अब 1000 रुपये प्रतिदिन कमा रही हैं. उनकी मेहनत और लगन ने यह साबित कर दिया है कि हुनर और संकल्प से कोई भी मंजिल पाई जा सकती है. महिलाओं का कहना है कि अब वे मजदूर नहीं, बल्कि अपने काम की मालिक हैं.
दिल्ली प्रदर्शनी में चयन
लौकरिया की इन महिलाओं को दिल्ली में आयोजित एक प्रमुख हस्तशिल्प प्रदर्शनी के लिए चयनित किया गया है. इससे उन्हें अपने उत्पादों को राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित करने का मौका मिलेगा. महिलाएं इस उपलब्धि से बेहद उत्साहित हैं और सरकार से मांग कर रही हैं कि उन्हें उनके उत्पादों के लिए बेहतर बाजार उपलब्ध कराया जाए.
प्रधानमंत्री मोदी की आत्मनिर्भर भारत मुहिम में योगदान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'आत्मनिर्भर भारत' और 'लोकल फॉर वोकल' अभियान को चंपारण की ये महिलाएं अपने कार्यों से मजबूत कर रही हैं. वहीं, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा चलाई जा रही महिला सशक्तिकरण योजनाओं का भी इन महिलाओं को लाभ मिल रहा है. अब जरूरत इस बात की है कि सरकार इनके उत्पादों को बड़े बाजार तक पहुंचाने में सहयोग करे.
रेड कॉरिडोर से आत्मनिर्भरता का सफर
जिस लौकरिया को कभी नक्सल प्रभावित क्षेत्र के रूप में जाना जाता था, वहां की महिलाओं ने आज आत्मनिर्भरता की नई कहानी लिख दी है. उनकी यह सफलता न केवल क्षेत्र की आर्थिक स्थिति को सुधार रही है, बल्कि अन्य महिलाओं को भी प्रेरित कर रही है.
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