Illegal Immigrants: अमेरिका ने अवैध भारतीय अप्रवासियों का पहला जत्था भेज दिया है. अलग-अलग राज्यों के 104 लोग बुधवार को पंजाब के अमृतसर पहुंचे. लौटने वाले भारतीयों से जब बात की गई तो उन्होंने 40 घंटे के इस सफर की दर्दनाक कहानी बताई है.
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Painful Story of Illegal Immigrants: अमेरिकी विमान से बुधवार को लाए गए 104 निर्वासितों में शामिल जसपाल सिंह ने दावा किया कि पूरी यात्रा के दौरान उन्हें (निर्वासित प्रवासियों के) हथकड़ी और पैरों में बेड़ियां बांधी गईं और अमृतसर हवाई अड्डे पर उतरने के बाद ही उन्हें हटाया गया. गुरदासपुर जिले के हरदोरवाल गांव के रहने वाले 36 वर्षीय सिंह ने बताया कि 24 जनवरी को अमेरिकी बॉर्डर पार करने के बाद उन्हें अमेरिकी सीमा गश्ती दल ने पकड़ लिया था.
अलग-अलग राज्यों से 104 अवैध प्रवासियों को लेकर एक अमेरिकी सैन्य विमान बुधवार को यहां उतरा. अवैध प्रवासियों के खिलाफ कार्रवाई के तहत डोनाल्ड ट्रंप सरकार के ज़रिए वापस भेजा गया यह भारतीयों का पहला जत्था है. सूत्रों ने बताया कि इनमें से 33-33 हरियाणा और गुजरात से, 30 पंजाब से, तीन-तीन महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश से और दो चंडीगढ़ से हैं. उन्होंने बताया कि निर्वासित लोगों में 19 महिलाएं और 13 नाबालिग शामिल हैं, जिनमें एक चार वर्षीय लड़का और पांच व सात साल की दो लड़कियां शामिल हैं.
अमेरिकी से भारत पहुंचने की यात्रा के बारे में जिक्र करते हुए लोगों ने बताया कि यह सफर नरक से बदतर था. पंजाब के होशियारपुर जिले के तहली गांव के रहने वाले 40 वर्षीय हरविंदर सिंह ने कहा,'40 घंटे तक हमें हथकड़ी लगाकर रखा गया, हमारे पैर जंजीरों से बंधे थे और हमें अपनी सीट से हिलने तक नहीं दिया गया. बार-बार अनुरोध करने के बाद हमें घसीटकर वॉशरूम ले जाने की अनुमति दी गई. क्रू बस वॉशरूम का दरवाजा खोलता और हमें अंदर धक्का दे देता.'
इस यात्रा को 'नरक से भी बदतर' बताते हुए हरविंदर ने कहा कि इस 40 घंटे के सफर में वो ठीक से खा भी नहीं पाए. हमें हथकड़ियों में ही खाना खिलाया गया. जब हमने सुरक्षा कर्मियों से कुछ समय के लिए हथकड़ी खोलने का अनुरोध किया, तो उन्होंने हमारी एक भी नहीं सुनी. यह सफर न सिर्फ शारीरिक रूप से दर्दनाक था, बल्कि मानसिक रूप से भी बहुत थका देने वाला था.' हालांकि, इस दौरान एक रहम दिल क्रू मेंबर ने उन्हें फल दिए.
हरविंदर ने बताया कि इस पूरी यात्रा में वह एक पल के लिए भी सो नहीं पाए. उनके दिमाग में बस यही चल रहा था कि उन्होंने अपनी पत्नी से अमेरिका में बेहतर जीवन का जो वादा किया था, वह पूरा नहीं हो पाया. जून 2024 में हरविंदर और उनकी पत्नी कुलजिंदर कौर ने एक बड़ा फैसला लिया. शादी के 13 साल बाद भी उनके पास सीमित संसाधन थे और दो बच्चों 12 साल के बेटे और 11 साल की बेटी के भविष्य को लेकर वे चिंतित थे.
उनका गुजारा पशुओं का दूध बेचकर चलता था, लेकिन आमदनी इतनी नहीं थी कि वे अपने बच्चों को बेहतर जीवन दे सकें. तभी एक दूर के रिश्तेदार ने उन्हें अमेरिका ले जाने का ऑफर दिया. उसने दावा किया कि वह हरविंदर को कानूनी तरीके से महज 15 दिनों में अमेरिका पहुंचा देगा, लेकिन इसके लिए 42 लाख रुपये लगेंगे. बेहतर जिंदगी के सपने को पूरा करने के लिए परिवार ने अपनी इकलौती एकड़ जमीन गिरवी रख दी और ऊंची ब्याज दर पर कर्ज ले लिया, लेकिन हकीकत इससे बहुत अलग थी.
कुलजिंदर कहती हैं,'आने वाले हालात के लिए मैं बिल्कुल भी तैयार नहीं थी. 8 महीनों तक मेरे पति को अलग-अलग देशों में घुमाया गया. उन्हें एक जगह से दूसरी जगह एक मोहरे की तरह आगे बढ़ाया जाता रहा. इस दौरान हरविंदर ने जानलेवा परिस्थितियों का सामना किया, लेकिन फिर भी उन्होंने अपने सफर को डॉक्यूमेंट किया और वीडियो बनाकर मुझे भेजते रहे.
जनवरी के मध्य में उनका परिवार से संपर्क पूरी तरह टूट गया और फिर बुधवार को गांववालों ने बताया कि हरविंदर अमेरिका से लौटने वाले 104 लोगों में शामिल हैं. यह खबर कुलजिंदर के लिए एक गहरे सदमे की तरह थी.
कुलजिंदर बताती हैं कि सिर्फ 42 लाख रुपये ही नहीं, बल्कि एजेंट ने हर स्टेप पर पैसे वसूले. महज ढाई महीने पहले जब हरविंदर ग्वाटेमाला में थे, तब एजेंट ने उनसे 10 लाख रुपये और मांगे. अब कुलजिंदर चाहती हैं कि उस एजेंट के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई हो और उनके पैसे वापस किए जाएं. कुलजिंदर कहती हैं,'हमने सिर्फ अपने बच्चों के अच्छे भविष्य का सपना देखा था, लेकिन अब हम कर्ज और निराशा में डूब गए हैं.'
हरविंदर का परिवार पहले भी बहुत साधारण जीवन जीता था. वे किराए की ज़मीन पर खेती और पशुपालन कर किसी तरह गुजारा कर रहे थे. उनके छोटे भाई भी किराए की ज़मीन पर खेती करते हैं, लेकिन आमदनी इतनी नहीं थी कि बच्चों की पढ़ाई और घर का खर्च आराम से चल सके. अब 85 साल के बुजुर्ग पिता और 70 साल की मां भी खेतों में काम करने के लिए मजबूर हैं. अब न जमीन बची, न पैसे—बस कर्ज और टूटी हुई उम्मीदें.