विंध्य पर्वत पर आदि शक्ति के तीन रूपों का मंदिर, जहां राम ने किया था दशरथ का तर्पण, नवरात्रि में लगता है मेला
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विंध्य पर्वत पर आदि शक्ति के तीन रूपों का मंदिर, जहां राम ने किया था दशरथ का तर्पण, नवरात्रि में लगता है मेला

UP News: उत्तर प्रदेश में एक ऐसा मंदिर है. जहां आदिशक्ति अपने तीनों रूप में विराजमान हैं. इस खास जगह के अगर दर्शन करने जाना है तो आपको मिर्जापुर के एक विश्व प्रसिद्ध धाम जाना होगा. आज हम आपको बताने जाने वाले हैं. इसी मंदिर और धाम के इतिहास और विशेषताओं के बारे में. पढ़िए पूरी खबर ...

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Mirzapur News/राजेश मिश्र: मिर्जापुर विंध्य पर्वत पर विराजमान आदिशक्ति अपने तीनों रूप का दर्शन विंध्य क्षेत्र में विराजमान होकर भक्तों दे रही हैं. तीनों रूप में महालक्ष्मी, महा काली एवं महासरस्वती का दर्शन त्रिकोण पथ पर ही मिलता है. हजारों मील का सफर करने वाली पतित पावनी गंगा धरती पर आकर विंध्य क्षेत्र में ही आदि शक्ति विंध्यवासिनी का पांव पखार कर त्रैलोक्य न्यारी शिव धाम काशी में प्रवेश करती है. भक्त गंगा स्नान कर देवी के धाम में हाजिरी लगाने के लिए प्रस्थान करते हैं. आपको बता दें कि विंध्य क्षेत्र में आदिशक्ति अपने तीनों रूप महालक्ष्मी, महासरस्वती तथा महाकाली के रूप में विराजमान होकर त्रिकोण बनाती हैं.

भगवान श्रीराम से भी जुड़ा है इतिहास
आपको बताते चलें कि विंध्याचल की इसी पावन और पवित्र जगह पर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने राम गया गंगा घाट पर अपने पिता राजा दशरथ का तर्पण जल दान किया था. इसके साथ ही विंध्य क्षेत्र की महिमा अपरम्पार है. आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी अपने भक्तों को लक्ष्मी के रूप में दर्शन देती हैं. रक्तासुर का वध करने के बाद माता काली एवं कंस के हाथ से छूटकर महामाया अष्टभुजा सरस्वती के रूप में त्रिकोण पथ पर विंध्य पर्वत पर विराजमान हैं. त्रिकोण परिक्रमा करने से दुर्गासप्तशती के पाठ का फल प्राप्त होता है. खास बात यह है कि आज भी त्रिदेव यहां शिशु रूप में स्नान कुंड में हैं.

रक्तासुर का वध
रक्तासुर का वध करने के बाद महाकाली विंध्य पर्वत पर आसीन हुईं. उनका मुख आज भी आसमान की ओर खुला हुआ है. इस रूप का दर्शन विंध्य क्षेत्र में ही प्राप्त होता है. तीनों रूपों के साथ विराजमान माता विंध्यवासिनी के धाम में त्रिकोण करने से भक्तों को सब कुछ मिल जाता है. जो उसकी कामना होती है. भक्त नंगे पांव व लेट-लेटकर दंडवत करते हुए चौदह किलोमीटर की परिक्रमा कर धाम में हाजिरी लगाते हैं.

अलग अलग दिशा में हैं विराजमान
जगत जननी माता विंध्यवासिनी अपने भक्तों का कष्ट हरण करने के लिए विन्ध्य पर्वत के ईशान्य कोण में लक्ष्मी के रूप में विराजमान हैं. तो वहीं दक्षिण में माता काली व पश्चिम दिशा में ज्ञान की देवी सरस्वती माता अष्टभुजा के रूप में विद्यमान हैं. जब भक्त करुणामयी माता विंध्यवासिनी का दर्शन करके निकलते हैं तो मंदिर से कुछ दूर काली खोह में विराजमान माता काली का दर्शन मिलता है. माता के दरबार में उनके दूत लंगूर व जंगल में विचरने वाले पशु पक्षियों का पहरा रहता है. माता काली का मुख आकाश की ओर खुला हुआ है. माता के इस दिव्य स्वरूप का दर्शन रक्तासुर संग्राम के दौरान देवताओं को मिला था. माता उसी रूप में आज भी अपने भक्तों को दर्शन देकर अभय प्रदान करती है. 

नवरात्री पर लाखों की संख्या में आते हैं श्रद्धालु
शक्ति पीठ विन्ध्याचल धाम में नवरात्रों के दौरान माता के दर पर हाजिरी लगाने वालों की तादाद प्रतिदिन लाखों में पहुच जाती है. औसनस उप पुराण के विन्ध्य खंड में विन्ध्य क्षेत्र के त्रिकोण का वर्णन किया गया है. विन्ध्य धाम के त्रिकोण का अनंत महात्म्य बताया गया है. भक्तों पर दया बरसाने वाली माता के दरबार में पहुचने वाले भक्तों के सारे कष्ट मिट जाते हैं.

क्या होता है ईशान्य कोण
भारतीय धर्म शास्त्र में ईशान्य कोण को देवताओं का स्थान माना गया है. विशाल विन्ध्य पर्वत के इसी कोण पर शिव के साथ शक्ति अपने तीनों रूप में विराजमान होकर भक्तों का कल्याण कर रही हैं. विन्ध्य क्षेत्र में दर्शन पूजन व त्रिकोण करने से अनंत गुना फल की प्राप्ति होती है. 

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