Aghori Sadhu : प्रयागराज में महाकुंभ का शुभारंभ हो चुका है, जहां अघोरी साधुओं की रहस्यमयी दुनिया और उनके जीवन से जुड़े मिथकों को समझने का अवसर मिल रहा है. उनके जीवन की अनोखी परंपराएं और साधना लोगों के लिए जिज्ञासा का विषय हैं.
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Aghori Sadhu : प्रयागराज में महाकुंभ का आगाज हो चुका है, जहां अलग-अलग अखाड़ों के संत, महामंडलेश्वर, और अघोरी साधु बड़ी संख्या में शामिल हो रहे हैं. इस मौके पर अघोरी साधुओं की रहस्यमयी और अनोखी दुनिया के बारे में जानना बेहद दिलचस्प होगा. इनके जीवन से जुड़े कई मिथक और भ्रांतियां लोगों के मन में हैं, लेकिन आज हम समझेंगे कि आखिर अघोरी कौन होते हैं और उनका जीवन कैसा होता है.
अघोरी कौन होते हैं?
अघोरी, जिन्हें निर्भय और शिवभक्त माना जाता है, मुख्य रूप से कपालिका परंपरा का पालन करते हैं. इसी कारण उनके पास हमेशा कपाल यानी नरमुंड रहता है. शिव और काली के उपासक ये साधु अपने शरीर पर राख मलते हैं और रुद्राक्ष की माला पहनते हैं. उनकी वेशभूषा में नरमुंड और भस्म का विशेष महत्व होता है. जानकारों का मानने है, कि अघोरियों को श्मशान से ही नरमुंड मिलते हैं, जिन्हें वो धारण कर लेते हैं.
श्मशान में जीवन
अघोरी साधु श्मशानों में साधना करते हैं और शिव को मोक्ष का प्रतीक मानते हैं. उनकी साधना की चरम अवस्था उन्हें निर्भय और आत्मसंयम से भर देती है. कई बार वे चिता से अधजला मांस खाते हैं और इसे अपनी परंपरा का हिस्सा मानते हैं. उनका मानना है कि यह साधना उन्हें जीवन और मृत्यु के चक्र को समझने में मदद करती है.
अघोरी जीवन का रहस्य
नागा साधुओं के जीवन के बारे में काफी जानकारी उपलब्ध है, लेकिन अघोरी साधुओं का जीवन आज भी एक रहस्य बना हुआ है. उनके बारे में जानकारी का अभाव और उनकी साधना की अनोखी शैली लोगों के मन में एक अलग तरह का डर और जिज्ञासा पैदा करती है. हालांकि, उनके जीवन को समझने से यह भय दूर हो सकता है.
महाकुंभ के इस विशेष आयोजन में अघोरी साधुओं की उपस्थिति न केवल उनकी साधना की अनोखी झलक दिखाएगी, बल्कि उनकी रहस्यमयी दुनिया को समझने का मौका भी देगी.