Bhishma Pratigya: भरी सभा में जब शिशुपाल की बातों को सुनकर भीम उसे मारने गए तो भीष्म पितामह ने रोक लिया. इसके बाद पितामह ने भीम को शिशुपाल के जन्म की कथा सुनाई.
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Bhishma Pledge: युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के समापन पर भगवान श्रीकृष्ण का सम्मान करने पर जब चेदिनरेश शिशुपाल ने कड़ी आपत्ति की तो भीष्म पितामाह ने उसे काफी खरी खोटी सुनाई. इस पर शिशुपाल आग बबूला हो गया और उसने वहां उपस्थित कुछ राजाओं को अपने पक्ष में करते हुए पांडवों को मारने की धमकी दी. शिशुपाल की रूखी और कड़वी बातों को सुनकर महाबली भीमसेन तिलमिला गए और उसे मारने के लिए दौड़े, किंतु पितामह भीष्म ने उन्हें रोक लिया. धर्मज्ञ भीष्म ने भीमसेन से हंसकर कहा कि भीम इसे छोड़ दो. अभी कुछ देर में सब लोग देखेंगे कि यह मेरे क्रोध की आग में पतंगों की तरह जल रहा है. उन्होंने शिशुपाल की बातों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया और भीम को समझाने लगे.
भीष्म ने बताई शिशुपाल के जन्म की कथा
भीष्म ने कहा कि भीमसेन शिशुपाल जब चेदिराज के वंश में पैदा हुआ तो इसके तीन आंखें और चार भुजाएं थीं. पैदा होते ही यह बच्चों की तरह रोने ी बजाय गधों की तरह रेंक रहा था. माता-पिता, सगे-संबंधी सभी उसका त्याग करने के बारे में विचार कर रहे थे, तभी आकाशवाणी हुई कि राजन यह तुम्हारा पुत्र महाबली होगा. तुम डरो मत, निश्चिंत होकर इसका पालन करो. इतना सुनते ही इसकी माता ने हाथ जोड़कर प्रार्थना की, जिसने भी मेरे बेटे के बारे में भविष्यवाणी की है वह चाहे कोई देवता या भगवान ही क्यों हों, मैं उन्हें प्रणाम करती हूं और जानना चाहती हूं कि मेरे इस पुत्र की मृत्यु किसके हाथों होगी. इस पर दोबारा आकाशवाणी हुई कि जिसकी गोद में जाने से तुम्हारे इस पुत्र के दोनों अतिरिक्त हाथ गिर जाएं और अतिरिक्त नेत्र भी लुप्त हो जाएगा, उसी के हाथों इसकी मृत्यु होगी.
श्रीकृष्ण की गोद में जाते ही शिशुपाल के दोनों अतिरिक्त हाथ गिर गए
भीष्म ने शिशुपाल के जन्म के प्रसंग को आगे बताते हुए कहा कि उस समय विचित्र शिशु के जन्म का समाचार सुनकर अनेकों राजा चेदिराज के यहां आए तो उन्होंने सभी का यथोचित सत्कार किया. बेटे को सभी लोगों ने गोद में खिलाया, किंतु उसके अतिरिक्त हाथ और आंख न गिरी. इसी कड़ी में भगवान श्रीकृष्ण और महाबली बलराम भी अपनी बुआ से मिलने चेदिपुर पहुंचे. प्रणाम, आदर सत्कार और कुशल-मंगल के बाद बुआ ने अपने भतीजे श्रीकृष्ण की गोद में प्यार से इसे दिया तो उसके दोनों अतिरिक्त हाथ गिर गए और आंख लुप्त हो गई. इस दृश्य को देखकर शिशुपाल की माता व्याकुल हो गईं. उन्होंने कहा कि हे श्रीकृष्ण तुम मेरे बेटे के अपराध को क्षमा कर देना और न मारना तो श्री कृष्ण ने उन्हें आश्वस्त किया कि बुआ तुम शोक न करो. इसके सौ अपराध भी मैं क्षमा कर दूंगा, जिनके बदले में इसे मार डालना चाहिए.
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