Ram Avatar Interesting Story: वाल्मीकि रामायण और रामचरितमान में भगवान विष्णु के राम अवतार का उल्लेख किया गया है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान विष्णु को मनुष्य रूप में अवतार क्यों लेना पड़ा. श्रीहरि के इस अवतार से मनुष्य को क्या सीख मिलती है. आइए जानते हैं भगवान का दिव्य रामावतार.
Trending Photos
Ram Avatar: भगवान विष्णु का रामावतार हिंदू धर्म के प्रमुख दस अवतारों में से एक है. रामावतार का उद्देश्य धर्म की स्थापना, अधर्म का नाश और मानवता को आदर्श जीवन का मार्गदर्शन प्रदान करना था. यह अवतार त्रेता युग में हुआ जिसका विवरण मुख्य रूप से महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण और गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस में मिलता है. आइए, भगवान विष्णु के सातवें रामावतार के बारे में विस्तार से जानते हैं.
क्यों हुआ भगवान विष्णु का राम अवतार?
भगवान विष्णु ने रामावतार इसलिए लिया क्योंकि राक्षसराज रावण ने अपनी शक्ति और अहंकार के कारण पृथ्वी पर अत्याचार और अधर्म फैलाया हुआ था. रावण को देवताओं से यह वरदान प्राप्त था कि उसे देवता, दानव या अन्य किसी भी शक्तिशाली प्राणी से मृत्यु नहीं मिलेगी. रावण ने मानव जाति को कमजोर समझते हुए उनके हाथों अपनी मृत्यु की संभावना को नकार दिया. इसलिए भगवान विष्णु ने मानव रूप में अवतार लेकर रावण का अंत करने और धर्म की स्थापना का निश्चय किया.
रामावतार की कथा
अयोध्या के राजा दशरथ के तीन रानियां- कौशल्या, सुमित्रा, और कैकेयी थीं. राजा दशरथ को कोई संतान नहीं था. अपनी इस समस्या के समाधान के लिए उन्होंने महर्षि ऋष्यशृंग द्वारा पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया. यज्ञ के फलस्वरूप, अग्निदेव ने राजा दशरथ को एक दिव्य खीर प्रदान की, जिसे तीनों रानियों में बांटा गया. इससे चार पुत्रों का जन्म हुआ- कौशल्या से राम, कैकेयी से भरत, सुमित्रा से लक्ष्मण और शत्रुघ्न. राम, भगवान विष्णु के अवतार थे और उनके तीनों भाई उनके सहायक और भक्त थे.
श्रीराम का विवाह का प्रसंग
राम अपने भाइयों के साथ महर्षि विश्वामित्र के आश्रम में गए, जहां उन्होंने राक्षस ताड़का और सुबाहु का वध किया. बाद में, जनकपुरी के राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता के लिए स्वयंवर का आयोजन किया. इसमें शर्त थी कि जो शिवधनुष को उठाकर उसे तोड़ेगा, वही सीता से विवाह करेगा. श्रीराम ने धनुष को उठाकर तोड़ दिया और सीता से विवाह किया. उनके साथ उनके तीनों भाइयों ने भी जनक वंश की कन्याओं से विवाह किया.
कैकेयी का वरदान और राम को 14 वर्षों का वनवास
राजा दशरथ ने राम को अयोध्या का युवराज घोषित करने का निर्णय लिया, लेकिन रानी कैकेयी ने अपने वरदान के रूप में राम को 14 वर्षों का वनवास और भरत को राजगद्दी मांगी. राजा दशरथ वचनबद्ध होने के कारण विवश हो गए. श्रीराम ने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए वनवास स्वीकार किया. उनके साथ माता सीता और छोटे भाई लक्ष्मण भी वनवास गए.
वनवास के दौरान घटनाएं
वनवास के दौरान प्रभु श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण ने दंडक वन, पंचवटी, चित्रकूट इत्यादि स्थानों पर समय बिताया. इस दौरान सूपर्णखा (रावण की बहन) ने राम से विवाह का प्रस्ताव रखा, जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया. इससे क्रोधित होकर सूपर्णखा ने सीता पर हमला करना चाहा, लेकिन लक्ष्मण ने उसकी नाक काट दी. इसका बदला लेने के लिए रावण ने मारीच के माध्यम से एक सोने का मृग भेजा. सीता ने उस मृग को लाने की जिद की. जब राम और लक्ष्मण मृग का पीछा करने गए, तो रावण ने साधु का रूप धारण कर सीता का हरण कर लिया और उन्हें लंका लेकर चला गया.
सीता की खोज
राम और लक्ष्मण ने सीता की खोज में कई स्थानों की यात्रा की. इस दौरान उनकी भेंट हनुमान और सुग्रीव से हुई. उन्होंने सुग्रीव के साथ मित्रता की और उसका खोया हुआ राज्य वापस दिलाया. हनुमान ने लंका जाकर सीता का पता लगाया और श्रीराम को सूचना दी.
राम-रावण युद्ध
राम ने वानर सेना और राक्षसों के बीच भीषण युद्ध में रावण के सभी प्रमुख योद्धाओं, जैसे- कुंभकर्ण, मेघनाद आदि को परास्त किया. इसके बाद भगवान राम ने रावण का वध कर सीता को मुक्त कराया. इस युद्ध में हनुमान, सुग्रीव, अंगद, जामवंत आदि ने श्रीराम का साथ दिया था.
अयोध्या वापसी और राज्याभिषेक
14 वर्षों का वनवास पूरा करने के बाद राम, सीता और लक्ष्मण अयोध्या लौटे. उनके लौटने की खुशी में अयोध्यावासियों ने दीप जलाए, जिसे आज दीपावली के रूप में मनाया जाता है. अयोध्या लौटने के बाद श्रीराम का राज्याभिषेक हुआ और उन्होंने रामराज्य की स्थापना की. रामराज्य आदर्श शासन का प्रतीक है, जिसमें हर व्यक्ति सुखी और संतुष्ट था.
रामावतार से क्या सीख मिलती है
धर्म पालन- श्रीराम ने हमेशा धर्म और सत्य का पालन किया.
आदर्श पुत्र और पति- राम ने पिता की आज्ञा का पालन किया और जीवनभर अपनी पत्नी के प्रति निष्ठावान रहे.
मर्यादा पुरुषोत्तम- राम ने हर रिश्ते में मर्यादा का पालन किया और दूसरों के लिए आदर्श बने.
करुणा और क्षमा- रावण जैसे शत्रु का वध करने के बाद भी उन्होंने उसका आदर किया और उसके अंतिम संस्कार का प्रबंध किया.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)