ईसा मसीह को मुसलमान भी मानते हैं अपना पैगम्बर, लेकिन इसलिए नहीं मनाते हैं क्रिसमस
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ईसा मसीह को मुसलमान भी मानते हैं अपना पैगम्बर, लेकिन इसलिए नहीं मनाते हैं क्रिसमस

Christmas: मुसलमान ईसा मसीह को अपना पैगंबर मानते हैं. वह बाइबल को आसमानी किताब भी मानते हैं. लेकिन वह न अब बाइबल को ईश्वर द्वारा भेजी गई आखिरी किताब मानते हैं, न तो क्रिसमस, न ही ईसा मसीह के जन्मदिन को मनाते हैं. वह प्रोफेट मोहम्मद को आखिरी पैगंबर मानते हैं. आखिर मुसलमान क्यों नहीं मनाते ईसा मसीह का जन्मदिन.

ईसा मसीह को मुसलमान भी मानते हैं अपना पैगम्बर, लेकिन इसलिए नहीं मनाते हैं क्रिसमस

Christmas: पूरी दुनिया में आज यानी 25 दिसंबर को क्रिस्मस का त्योहार मनाया जा रहा है. यह त्योहार ईसा मसीह की पैदाइश के बतौर मनाया जाता है. क्रिसमस प्यार और अमन का पैगाम देता है. यह दिन सहयोग, दया और करुणा की भावना को अपनाने के लिए हमें प्रेरित करता है. लेकिन इस त्योहार को मुस्लिम बिरादरी के लोग नहीं मनाते हैं. इसकी कई वजहें हैं. हम यहां आपको इसके बारे में बता रहे हैं. 

पैगंबर हैं ईसा मसीह
इसाई धर्म का पालन करने वाले लोग हजरत ईसा अलैहिस्सलाम को अल्लाह का बेटा मानते हैं. इसके साथ-साथ वह ईसा मसीह को भगवान भी मानते हैं. जबकि इस्लाम धर्म के हिसाब से जब से दुनिया बनी है तब से अब तक दुनिया में अलग-अलग परिस्थिति और देश के हिसाब से 1 लाख 24 हजार पैगंबर आए. सबसे आखिरी पैगंबर प्रोफेट मोहम्मद स0. हैं. इस्लाम ईसा मसीह को भी पैगंबर मानता है. यहां तक कि किसी के मुसलमान होने के लिए यह बुनियादी शर्त है कि वह ईसा मसीह को भी इस्लाम का पैगंबर मानता हो. मुसलमान ईसा मसीह को पैगंबर तो मानता है लेकिन मौजूदा बाइबल के संदेश को वह ईश्वर का अंतिम संदेश नहीं मानता है. इस्लाम का मानना है कि ईसाइयों ने बाइबल के मूल संदेश को बदल दिया है. इसलिए मुसलमान अब सिर्फ कुरान के संदेशों को अल्लाह का संदेश मानता है.

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बाइबल
ईसाई धर्म की सबसे पाक किताब बाइबल है. वह मानते हैं कि यह किताब हजरत ईसा अलैहिस्सलाम पर नाजिल हुई. वह इसी को फॉलो करते हैं. इस्लाम धर्म के हिसाब से बाइबल आसमानी किताब है. वह यह भी मानते हैं कि यह हजरत ईसा अलैहिस्सलाम पर यह किताब नाजिल (अवतरित) हुई. लेकिन उनका कहना है कि प्रोफेट मोहम्मद आखिरी पैगंबर हैं. उन पर कुरान नाजिल हुआ. इसलिए वह प्रोफेट मोहम्मद स0. को मानते हैं और कुरान को अल्लाह का आखिरी पैगाम मानते हैं. उनका मानना है कि कुरान बाइबल का लेटेस्ट वर्जन है. मुसलमान यह भी मानता है कि कुरान के संदेशों में कोई बदलाव नहीं कर सकता है. इसलिए कुरान को हिफ्ज (कंठस्थ) करने की भी परंपरा है और अल्लाह ने कयामत तक कुरान के संदेशों की हिफाजत करने का जिम्मा लिया है. 

जन्मदिन
इस्लाम के जानकार मानते हैं कि इस्लाम में जन्मदिन मनाने का कांसेप्ट नहीं है. मुस्लिम समुदाय के लोग प्रोफेट मोहम्मद स0. का जन्मदिन नहीं मनाते हैं. इसलिए उनका कहना है कि हम हजरत ईसा अलैहिस्सलाम का भी जन्मदिन नहीं मनाते हैं. हालांकि मुसमानों में एक ऐसा भी तबका है जो प्रोफेट मोहम्मद के यौम-ए-पैदाइश बहुत धूम-धाम से मनाता है.

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