तो इसलिए कांग्रेस ने मल्लिकार्जुन खड़गे पर खेला दांव, जानिए इसके पीछे का ये गणित
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तो इसलिए कांग्रेस ने मल्लिकार्जुन खड़गे पर खेला दांव, जानिए इसके पीछे का ये गणित

Mallikarjun Kharge: कांग्रेस अध्यक्ष ( Congress President ) पद के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे ( Mallikarjun Kharge ) का नाम आते ही अचानक लोगों के दिमाग में ये बात कौंध गई कि अशोक गहलोत ( Ashok Gehlot ), दिग्विजय सिंह ( Digvijay Singh ) और कमलनाथ सिंह ( Kamal Nath Singh ) जैसे नेताओं के बीच खड़गे की इतनी मजबूत एंट्री कैसे हो गई.

तो इसलिए कांग्रेस ने मल्लिकार्जुन खड़गे पर खेला दांव, जानिए इसके पीछे का ये गणित

Mallikarjun Kharge: कांग्रेस अध्यक्ष ( Congress President ) पद के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे ( Mallikarjun Kharge ) का नाम आते ही अचानक लोगों के दिमाग में ये बात कौंध गई कि अशोक गहलोत ( Ashok Gehlot ), दिग्विजय सिंह ( Digvijay Singh ) और कमलनाथ सिंह ( Kamal Nath Singh ) जैसे नेताओं के बीच खड़गे की इतनी मजबूत एंट्री कैसे हो गई. क्यों दिग्विजय सिंह जैसे कद्दावर और बेबाक नेता ने खड़गे का नाम आते ही अपने पैर पीछे खीच लिए. दरअसल, मल्लिकार्जुन खड़गे महादलित समुदाय से आते हैं. किसी दलित चेहरे को अध्यक्ष बनाने से कांग्रेस को देशभर में दलित ( Dalit ) और महादलित ( Mahadalit) वोट बैंक को साधने का मौका मिल सकता है. 

इसके इतर कांग्रेस का मूल वोट बैंक दलित है, जबकि दिग्जविय सिंह समेत बाकी दावेदार अगड़ी जाति से आते हैं. मल्लिकार्जुन खड़गे के नाम के पीछे जी-23 की सियासत को भी माना जा रहा है. खड़गे को वफादारी और जातीय समीकरण दोनों में फिट माना जा रहा है. उनके अध्यक्ष बनाने का फायदा कर्नाटक समेत दक्षिण के राज्यों में कांग्रेस ( Congress ) को मिल सकता है. कांग्रेस उत्तर में सिकुड़ रही है, ऐसे में अब उम्मीद दक्षिण पर टिकी है. इस लिहाज कांग्रेस के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे से बेहतर विकल्प शायद ही कोई हो सकता है.

आज नामांकन दाखिल करने का आखिरी दिन 

कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने का शुक्रवार आखिरी दिन है. अध्यक्ष पद के लिए अब मल्लिकार्जुन खड़गे और शशि थरूर के बीच मुकाबला होने की संभावना है. खड़गे के नाम के प्रस्ताव को लेकर जिस तरीके से कांग्रेसी नेता आगे आए हैं उसके बाद उनकी जीत तय नजर आ रही है. ऐसा लग रहा है जैसे शशि थरूर ( Shashi Tharoor ) सिर्फ नाम के लिए खड़े हुए हैं. कांग्रेस खुद चाहती है कि खड़गे ही कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनें.

एक ही सीट से 9 बार बने विधायक
साल 2000 में कन्नड़ सुपरस्टार डॉ. राजकुमार का जब चंदन तस्कर वीरप्पन ने अपहरण किया था, उस समय खड़गे प्रदेश के गृह मंत्री थे. 2009 से उन्होंने अपना संसदीय सफर शुरू किया जिसके बाद लगातार दो बार गुलबर्गा  से लोकसभा सांसद रहे. इसके केंद्र में मनमोहन सिंह सरकार में श्रम और रोजगार मंत्री और रेल मंत्री की भूमिका निभाई. खड़गे खुद को भले ही कर्नाटक का मानते हों, लेकिन उनकी जड़ें मूल रूप से महाराष्ट्र में हैं. यही कारण है कि खड़गे बखूबी मराठी बोल और समझ लेते हैं. उनकी खेलों खासकर किक्रेट, हॉकी और फुटबॉल में खासी रुचि है. उनके बेटे प्रियांक खड़गे भी राजनीति में हैं, जो फिलहाल दूसरे टर्म के कांग्रेस विधायक हैं. कांग्रेस के सीनियर नेता और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी वह नेता थे जिन्हें नेशनल हेराल्ड मामले में ईडी ने पूछताछ के लिए बुलाया था. वह नेशनल हेराल्ड से जुड़ी कंपनी यंग इंडिया के प्रिंसिपल ऑफिसर भी हैं.

छात्र राजनीति से शुरू किया सियासी कैरियर 
छात्र राजनीति से शुरुआत करने वाले 80 वर्षीय खड़गे ने एक लंबी पारी यूनियन पॉलिटक्स की भी खेली. वह संयुक्त मजदूर संघ के एक प्रभावशाली नेता थे, जिन्होंने मजदूरों के अधिकारों के लिए किए गए कई आंदोलनों का नेतृत्व किया. खड़गे का जन्म कर्नाटक के बीदर जिले के वारावत्ती इलाके में एक किसान परिवार में हुआ था. गुलबर्गा के नूतन विद्यालय से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की और गुलबर्गा के सरकारी कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली. फिर गुलबर्गा के ही सेठ शंकरलाल लाहोटी लॉ कॉलेज से एलएलबी करने के बाद वकालत करने लगे.

1969 में थामा कांग्रेस का हाथ

कांग्रेस का हाथ खड़गे ने साल 1969 में थामा और पहली बार 1972 में कर्नाटक की गुरमीतकल असेंबली सीट से विधायक बने. खड़गे गुरमीतकल सीट से नौ बार विधायक चुने गए. इस दौरान उन्होंने विभिन्न विभागों में मंत्री का पद भी संभाला. मल्लिकार्जुन खड़गे गांधी परिवार के भरोसेमंद माने जाते हैं, जिसको लेकर समय-समय पर उन्हें पार्टी की ओर से वफादारी का इनाम भी मिलता रहा है. साल 2014 में उन्हें लोकसभा में पार्टी का नेता बनाया गया. लोकसभा चुनाव 2019 में हार के बाद भी कांग्रेस पार्टी ने उन्हें 2020 में राज्यसभा भेज दिया. पिछले साल गुलाम नबी आजाद का कार्यकाल खत्म होने के बाद कांग्रेस पार्टी ने उन्हें राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष बना दिया.

 

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