एडवेंचर से भरपूर है उत्तराखंड के घने जंगल-पहाड़ में बसी ये शानदार जगह, विवेकानंद ने भी यहां की थी साधना
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एडवेंचर से भरपूर है उत्तराखंड के घने जंगल-पहाड़ में बसी ये शानदार जगह, विवेकानंद ने भी यहां की थी साधना

Almora Syahi Devi Mandir History: उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित स्याही देवी मंदिर का इतिहास लगभग 900 साल पुराना बताया जाता है. मंदिर से जुड़ी मान्यता यह भी है कि यहां मां की मूर्ति दिन में तीन बार रंग बदलती है.

Almora Syahi Devi Mandir

Almora Syahi Devi Mandir (देवेंद्र बिष्ट) : उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है, और यहां के हर मंदिर की अपनी अलग मान्यताएं और रहस्य हैं. ऐसा ही एक प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर है स्याही देवी मंदिर, जो अल्मोड़ा से लगभग 36 किलोमीटर दूर, एक ऊँची पहाड़ी चोटी पर और घने जंगल के बीच स्थित है. मान्यता है कि यह मंदिर एक ही रात में बनकर तैयार हुआ था. बताया जाता है कि यहां मां की मूर्ति दिन में तीन बार रंग बदलती है. स्याही देवी मंदिर सिर्फ आस्था का केंद्र ही नहीं, बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य और ऐतिहासिक महत्व के लिए भी प्रसिद्ध है.

900 साल पुराना, एक रात में निर्माण
स्याही देवी मंदिर उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित एक प्राचीन मंदिर है. जिसका इतिहास लगभग 900 साल पुराना बताया जाता है. मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण कत्यूर राजाओं ने एक ही रात में करवाया था. ऐतिहासिक और धार्मिक नगर अल्मोड़ा को अष्ट भैरव और नौ दुर्गा के शहर के रूप में भी जाना जाता है. अल्मोड़ा की स्थापना के समय इसे अष्ट भैरव और नौ दुर्गाओं से कीलित किया गया था. इन नौ दुर्गाओं में से एक हैं माता शीतला, जिन्हें उत्तराखंड के लाखों लोग कुलदेवी के रूप में पूजते हैं. माँ स्याही देवी का अल्मोड़ा में एक सिद्ध पीठ है, जिसे स्याही देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है.

प्राकृतिक सुंदरता का अद्भुत संगम
यह मंदिर केवल धार्मिक आस्था का केंद्र ही नहीं, बल्कि प्राकृतिक सुंदरता का भी अद्भुत संगम है. यहां तक पहुंचने के लिए घने बांस के जंगलों से होकर गुजरना पड़ता है. इस यात्रा के दौरान हिमालय की नीली-स्लेटी पर्वत शृंखलाएं मन को मोह लेती हैं. इस क्षेत्र की एक और विशेषता यहां के शुद्ध जल स्रोत हैं. घने जंगल और जड़ी बूटियों से रिसकर आया यहां का पानी अल्कलाइन वॉटर से ज्यादा प्रभावी है. इस पानी को अगर 15 दिनों तक पिया जाए तो यह पेट की कई बीमारियों को खत्म कर देता है.

स्वामी विवेकानंद ने की थी यहां साधना
स्याही देवी मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि एक सिद्ध तपस्थली भी रहा है. कहा जाता है कि कई तपस्वियों और संतों ने यहाँ कठोर तपस्या की थी. इतना ही नहीं, 1898 में स्वामी विवेकानंद ने भी यहाँ आकर साधना की थी. मां स्याही देवी के दर्शन के लिए देशभर से श्रद्धालु यहाँ आते हैं. मंदिर परिसर में प्रवेश करते ही भक्तों को एक दिव्य ऊर्जा और असीम शांति का अनुभव होता है. स्याही देवी मंदिर एक ऊँची पहाड़ी चोटी के शिखर पर स्थित है. अल्मोड़ा नगर के किसी भी कोने से इस पहाड़ी चोटी को देखने पर इसके शीर्ष पर शेर की आकृति दिखाई देती है. 

पेड़ के तने और शाखाएं बनातीं शेर की आकृति
मंदिर परिसर में 7-8 पेड़ों के तने और शाखाएँ मिलकर शेर की आकृति बनाती हैं. इन वृक्षों के ठीक नीचे माता स्याही देवी का मंदिर स्थित है. माता शीतला देवी का वाहन सिंह (शेर) माना जाता है, ऐसे में मंदिर परिसर में शेर की आकृति का दिखना श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए आकर्षण और चर्चा का केंद्र बना रहता है. जो भी श्रद्धालु माँ स्याही देवी के दरबार में सच्चे मन से प्रार्थना करता है, उसकी हर मनोकामना पूरी होती है. भक्तजन यहाँ माँ को भेंट स्वरूप घंटियाँ अर्पित करते हैं. यही वजह है कि मंदिर के चारों ओर सैकड़ों घंटियाँ टंगी हुई दिखाई देती हैं.

कुलदेवी के रूप में होती है पूजा
उत्तराखंड के कई परिवारों में माता स्याही देवी को कुलदेवी के रूप में पूजा जाता है. स्याही देवी क्षेत्र के आसपास के 52 गाँवों के ग्रामीणों की यहाँ पर गहरी आस्था है. यहां के काश्तकार (किसान) अपनी फसल, अनाज और सब्जियाँ उगाने के बाद सबसे पहले माँ को भोग लगाते हैं. अगर आप अध्यात्म और प्राकृतिक सौंदर्य दोनों का अनुभव लेना चाहते हैं, तो माँ स्याही देवी का मंदिर आपकी यात्रा सूची में जरूर होना चाहिए. यह केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक यात्रा है, जहाँ आस्था, इतिहास और प्रकृति का अनोखा संगम देखने को मिलता है.

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