Independence Day Special: अंग्रेजों ने 57 वीर सपूतों को दी थी सामूहिक फांसी, ये खंडहर आज भी देते हैं शहादत की गवाही
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Independence Day Special: अंग्रेजों ने 57 वीर सपूतों को दी थी सामूहिक फांसी, ये खंडहर आज भी देते हैं शहादत की गवाही

Independence Day Special: अडींग की मिट्टी में आज भी ब्रजभूमि के रणबांकुरों की शौर्यगाथा की खुशबू आती है. यहां के 57 ठाकुर जाति के लोगों को बाद में अंग्रेजों ने ऐतिहासिक किले पर फांसी दे दी. अब यहां पर श्री राष्ट्रीय राजपूत करनी सेना ने शहीद स्मारक बनवाने की मांग की है.

Independence Day Special: अंग्रेजों ने 57 वीर सपूतों को दी थी सामूहिक फांसी, ये खंडहर आज भी देते हैं शहादत की गवाही

कन्हैया लाल/मथुराः उत्तर प्रदेश कई शहर अंग्रेजी हुकूमत की गवाही देते हैं, जिनमें से एक मथुरा भी है. यहां कई क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ ईंट से ईंट बजाने में अपनी अहम भूमिका निभाई है. क्रांतिकारियों की बैठक और गुप्त रणनीति का स्थान मथुरा में ही रहा करता था. अधिकतर क्रांतिकारी देश भर से आकर मथुरा-वृंदावन में बने प्राचीन मंदिरों में आकर अपनी रणनीति तैयार करते थे.

आज भी मथुरा 1857 की क्रांति की गवाही देता है. यहीं से शुरू हुआ था सन 57 का विद्रोह और यहां के 57 राजपूतों ने बलिदान दिया था. मथुरा से उठी क्रांति की चिंगारी ने पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया और देश से अंग्रजों को भागना पड़ा.

अंग्रेजी हुकूमत का हेडक्वार्टर हुआ करता था अडींग  गांव 
मथुरा से 16 किलोमीटर दूर स्थित गांव अडींग कभी अंग्रेजी हुकूमत का हेडक्वार्टर हुआ करता था. पुलिस स्टेशन, तहसील, के माध्यम से अंग्रेज पूरे इलाके की खबर रखा करते थे. गांव अडींग की मिट्टी में आज भी ब्रजभूमि के रणबांकुरों की शौर्यगाथा की खुशबू आती है. अंग्रेजी हुकूमत ने ब्रज क्षेत्र में 1857 की क्रांति को कुचलने के लिए 57 ठाकुर ग्रामीणों को फांसी पर चढ़ा दिया था. महीनों तक ग्रामीणों पर बर्बर जुल्म ढाए गए खंडहर के रूप में मौजूद भरतपुर में नरेश सूरजमल की हवेली हंसते-हंसते मौत को गले लगाने वाले आजादी के दीवानों की आज भी गवाह बनी हुई है. 

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अडींग आजादी के शिल्पकारों की भूमि रहा है
मथुरा गोवर्धन मार्ग पर बसा गांव अडींग आजादी के शिल्पकारों की भूमि रहा है. यहां के लोगों का स्वाधीनता आंदोलन में योगदान इतिहास के पन्नों पर अंकित है. अडींग में आजादी के आंदोलनों की बढ़ती संख्या के कारण ब्रिटिश हुकूमत ने यहां पुलिस चौकी की स्थापना कर दी थी. 1857 के गदर के समय एक सिपाही अख्तियार ने बैरकपुर छावनी में कंपनी कमांडर को गोली से उड़ा दिया. इतिहास खंगालें तो बैरकपुर छावनी से मेरठ होते हुए देश में जगह-जगह अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह की पुकार सुनाई देने लगी. 

अंग्रेजों की मुखबिरी के संदेह में हाथरस के राजा को मौत की नींद सुलाया
मथुरा में भी क्रांति की चिंगारी सुलग उठी. ठाकुर पदम सिंह बताते है कि 30 मई 1857 को घटी इस घटना के बाद इस वीर ने अपने साथियों के साथ आगरा जा रहा राजकोष का साढ़े चार लाख रुपया लूट लिया. इसमें तांबे के सिक्के और आभूषण छोड़ दिए गए, जिसे लूटने के लिए सिपाही और शहरवासी दिन भर जूझते रहे.

इन फैक्ट्री विद्रोही सिपाहियों ने जेल तोड़कर क्रांतिकारियों को निकाला और दिल्ली की ओर कूच कर गए. इतिहास बताता है कि 31 मई को इन लोगों ने कोसी पुलिस स्टेशन पर पुलिस बंगले में जमकर लूटपाट की. उन्होंने अंग्रेजों की मुखबिरी के संदेह में हाथरस के राजा गोविंद सिंह को भी वृंदावन स्थित केसी घाट पर मौत की नींद सुला दिया.

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धोखे से बुलाकर सामूहिक रूप से दी गई थी फांसी
विद्रोह की गूंज के कारण तत्कालीन अंग्रेज कलेक्टर जर्नल आगरा ने विद्रोह को दबाने के लिए विशेष सैनिक टुकड़ी बुलाई. इन लोगों ने सराय में 22 जमीदारों को गोलियों से भून दिया. अडींग के क्रांतिकारियों ने भी खजाना लूटने का प्रयास किया, यहां के 57 ठाकुर जाति के लोगों को बाद में अंग्रेजों ने ऐतिहासिक किले पर फांसी दे दी. वहीं, अब यहां पर स्थानीय लोग और श्री राष्ट्रीय राजपूत करनी सेना ने शहीद स्मारक बनवाने की सरकार से मांग की है.

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