हाल ही में जारी की गई Swedish University of Agricultural Sciences की एक रिपोर्ट के अनुसार, फ्रेशवॉटर इकोसिस्टम में न्यूट्रिशन कम हो सकता है और टॉक्सिक लेवल बढ़ सकता है.
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नई दिल्ली: क्लाइमेट चेंज का प्रभाव न केवल मौसम को प्रभावित कर रहा है, बल्कि इसका असर आपके खान-पान पर भी पड़ा है. हाल ही में जारी की गई Swedish University of Agricultural Sciences की एक रिपोर्ट के अनुसार, जहां एक तरफ क्लाइमेट चेंज से फ्रेशवॉटर इकोसिस्टम में न्यूट्रिशन कम हो सकता है, वहीं दूसरी तरफ फूड चेन में टॉक्सिक लेवल भी बढ़ सकता है.
भारत जैसे देशों में एक बड़ी आबादी अपने जीवनयापन के लिए नदी या समुद्री इकोसिस्टम पर निर्भर करती हैं, Sea food बहुत ज्यादा पसंद भी किया जाता है. ऐसे में इस तरह की रिसर्च भारत के लोगों की परेशानी भी बढ़ा सकती है.
इसको और बेहतर तरीके से समझने के लिए पहले आपको फूड चेन (Food Chain) को समझना होगा. एक जीव से दूसरे जीव में आहार ऊर्जा यानी कि फूड एनर्जी के स्थानान्तरण की श्रृंखला को फूड चेन कहा जाता है. प्रत्येक जीव अपने से पहले जीव पर भोजन या ऊर्जा के लिए निर्भर करता है. जैसे मान लीजिए आप मछली का सेवन करते है, मछली अपनी ऊर्जा और आहार के लिए समुद्र या नदी में मौजूद किसी छोटी मछली को खाती है इसी तरह वो छोटी मछली भी अपने आहार और ऊर्जा के लिए किसी चीज पर निर्भर करती है. इसी को food chain कहा जाता है. अगर किसी वजह से इस चेन में बदलाव आता है तो इसका असर फूड चेन की सभी लेयर्स पर पड़ता है.
न्यूट्रिशनिस्ट डॉ. शिखा शर्मा का कहना है कि Climate Change और ग्लोबल वार्मिंग के कारण Freshwater Ecosystem में न्यूट्रिएंट कम हो जाते हैं और Toxicity यानी कि विषैलापन बढ़ जाता है. इसका असर भी फूड चेन में मौजूद सभी लेयर्स पर होगा. Food chain में सबसे ऊपर वाली लेयर्स में इंसान होते हैं तो इसका मतलब ये है कि इसका सबसे ज्यादा असर इंसानों पर पड़ेगा.
भारत का तटीय क्षेत्र यानी कि Coastal Area 7,517 किलोमीटर तक फैला है. एक अनुमान के अनुसार, भारत में समुद्र तट से लगभग 50 किलोमीटर के दायरे में रहने वाले लोगों की संख्या लगभग 26 करोड़ है. अगर कुछ प्रमुख राज्यों की बात करें तो पश्चिम बंगाल, ओडिशा, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, गोवा, गुजरात, और महाराष्ट्र जैसे राज्यों की एक बड़ी आबादी समुद्र के आस पास रहती है.
पर्यावरणविद पंकज सारन कहते हैं कि Coastal Areas में हमेशा ही जलवायुपरिवर्तन और मौसमी आपदाओं का खतरा बना हुआ है. ऐसे में वॉटर इकोसिस्टम का खराब होना भारत जैसे देशों के लिए बहुत महंगा भी पड़ सकता है.
Climate Change से भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी गहरा असर पड़ सकता है. Advancing Earth and Space Science की रिसर्च के अनुसार, अगर Climate Change के कारण तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है, तो भारत का जीडीपी साल में तीन प्रतिशत तक कम हो सकता है.
अब आपको ये भी जानना चाहिए भारत में सी फूड (Sea Food) इंडस्ट्री का क्या हाल है. मछली निर्यात इस समय 46,589 करोड़ रुपये है और ये 2024-25 तक दोगुने से अधिक बढ़कर एक लाख करोड़ रुपये तक हो सकता है. भारत सरकार ने अगले पांच वर्षों में मछली पालन क्षेत्र में 9 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश का लक्ष्य तय किया है.
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केंद्र सरकार 2024-25 तक मछली उत्पादन को 138 लाख टन से बढ़ाकर 220 लाख टन तक करने का प्रयास कर रही है. वहीं अगर इस क्षेत्र में रोजगार की बात करें, तो 2024-25 तक इस क्षेत्र में 55 लाख लोगों को रोजगार मिलने की उम्मीद है, जो अभी फिलहाल 15 लाख है.
ऐसे में अगर क्लाइमेट चेंज के वॉटर इकोसिस्टम पर प्रभाव से जुड़ी इस तरह की स्टडी सामने आती है तो ये बात भारत जैसे देशों के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकती है.