Eight Years of Modi Govt: पड़ोसियों से विरोधियों तक, कूटनीति से मोदी सरकार ने कैसे साधे कई निशाने
Advertisement
trendingNow11203389

Eight Years of Modi Govt: पड़ोसियों से विरोधियों तक, कूटनीति से मोदी सरकार ने कैसे साधे कई निशाने

Eight Years of Modi Rule:  किसी भी सरकार के लिए जितना जरूरी घरेलू मुद्दों को सुलझाना होता है, उतना ही पड़ोसियों से रिश्ते बनाए रखना भी. 2014 में जब नरेंद्र मोदी पहली बार प्रधानमंत्री बने तो 'नेबरहुड फर्स्ट' नीति की झलक साफ नजर आई. सार्क देशों समेत अन्य कई राष्ट्रप्रमुखों को शपथ ग्रहण समारोह का न्योता भेजा गया था. 

पीएम नरेंद्र मोदी

Eight Years of Modi Rule: देश की सत्ता पर मोदी सरकार को राज करते हुए 8 साल बीत चुके हैं. इन आठ साल में मोदी सरकार के नाम जहां कई उपलब्धियां रहीं, वहीं कई चुनौतियां भी सुरसा की तरह मुंह फैलाए उसके सामने खड़ी नजर आईं. मोदी सरकार ने 2014 में जब कमान संभाली थी, उस वक्त देश पर कांग्रेस राज के भ्रष्टाचार की छीटें थीं. 2जी, कोयला घोटाला, वीवीआईपी चॉपर घोटाला जैसे मामले सुर्खियों में बने हुए थे. जबकि पाकिस्तान भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा था. 

 किसी भी सरकार के लिए जितना जरूरी घरेलू मुद्दों को सुलझाना होता है, उतना ही पड़ोसियों से रिश्ते बनाए रखना भी. 2014 में जब नरेंद्र मोदी पहली बार प्रधानमंत्री बने तो 'नेबरहुड फर्स्ट' नीति की झलक साफ नजर आई. सार्क देशों समेत अन्य कई राष्ट्रप्रमुखों को शपथ ग्रहण समारोह का न्योता भेजा गया था. 

पड़ोसी पहले की नीति

घरेलू राजनीति की छाप विदेश नीति पर भी दिखाई देती है. इसलिए पड़ोसियों से संबंध बनाना बेहद जरूरी है. पीएम मोदी ने इसी की कोशिश करते हुए न सिर्फ नवाज शरीफ को शपथ ग्रहण समारोह में बुलाया बल्कि 25 दिसंबर 2015 को उनसे मिलने लाहौर भी गए ताकि दोनों देशों के बीच संबंध और बेहतर हो सकें. मोदी सरकार की कूटनीति में बेहद अहम बात रही है आत्मनिर्भरता. यानी अब तक जो चीजें विदेशों से आयात की जाती थीं, उन्हें देश में ही बनाकर बेचना. इससे भारत को तो फायदा होगा ही होगा, दूसरे देशों को भी फायदा होगा.
  
पीएम मोदी ने कई ऐसे देशों का दौरा किया, जहां बरसों से कोई भारतीय प्रधानमंत्री नहीं गया. रोटी-बेटी का रिश्ता वाला नेपाल हो या फिर बांग्लादेश, अफगानिस्तान हो या फिर चीन. मोदी सरकार ने पड़ोसियों से संबंध स्थापित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. यहां तक कि पीएम मोदी अमेरिका, इजरायल, फ्रांस, यूएई, जापान भी गए. इन सब दौरों में कई अहम समझौतों पर दस्तखत हुए, जिससे विदेशी निवेश बढ़ा और देश में कई योजनाएं जमीन पर उतरती नजर आईं. इनमें राफेल डील और बुलेट ट्रेन डील अहम है. 

पीएम के न्योते पर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग गुजरात आए और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और बराक ओबामा ने भी भारत दौरा किया. कई देशों ने पीएम मोदी को अपने सर्वोच्च सम्मान से भी नवाजा है.

पड़ोसियों की मदद करने में पीछे नहीं

पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि आप अपने दोस्त बदल सकते हैं लेकिन पड़ोसी नहीं. इसी तर्ज पर पड़ोसियों से संबंध सुधारने की कोशिश मोदी सरकार की तरफ से की गई. चाहे आर्थिक रूप से जूझ रहे श्रीलंका को गेहूं और अन्य सामग्री पहुंचाना हो या फिर तालिबान से पहले और बाद में भी अफगानिस्तान की मदद करना. तालिबान राज से पहले भारत अफगानिस्तान के साथ कई अहम योजनाओं पर काम कर रहा था.

 तालिबान राज के बाद वहां उपजे खाद्य संकट को दूर करने के लिए भी भारत ने कई हजार टन गेहूं भेजा था. नेपाल की हालत भी इन दिनों खस्ता है. ऐसे में भारत के साथ उसका 67 प्रतिशत व्यापार होता है. नेपाल भारत से सबसे ज्यादा वाहन और स्पेयर पार्ट्स, सब्जियां, चावल, पेट्रोलियम प्रोडक्ट, मशीनरी, दवाएं, एमएस बिलेट, हॉट स्टील, इलेक्ट्रिक सामान और कोयला खरीदता है.

दोस्ती को हां, आतंकवाद को ना

चाहे चीन हो या पाकिस्तान या कोई अन्य देश. मोदी सरकार के 8 साल में कूटनीति का दबदबा साफ नजर आया. मोदी सरकार 2.0 बनी तो तत्कालीन विदेश सचिव एस जयशंकर को विदेश मंत्री बनाया गया. जयशंकर चीन मामलों के एक्सपर्ट माने जाते हैं. संयुक्त राष्ट्र हो या कोई और मंच पीएम मोदी के सुर आतंकवाद को लेकर हमेशा तल्ख नजर आए.

 26/11 हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद, जकीउर रहमान लखवी जैसे आतंकियों को लेकर भारत ने हमेशा अपना रुख सख्त रखा. आतंकवाद पर लगाम लगाने और उन्हें पनाह देने वालों का पर्दाफाश करने का पूरी दुनिया से आह्वान किया. दुनिया में भारत ने हमेशा शांति का संदेश दिया है और यूक्रेन-रूस युद्ध में भी भारत ने बातचीत से ही मसले हल करने की बात कही है.

चुनौतियां भी कम नहीं

18 सितंबर 2016 में उरी में भारतीय जवानों हुए आतंकवादी हमले में 19 जवान शहीद हो गए. इसके बाद पाकिस्तान को पहले तो भारत ने कूटनीतिक तरीके से घेरा. 9 दिन बाद पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक की और आतंकवादियों को मौत की नींद सुलाकर कई लॉन्च पैड्स तबाह कर दिए. तब भारत ने पहली बार दुनिया को बताया था कि सिर्फ शांति ही नहीं भारत घर में घुसकर भी अटैक कर सकता है. इसके बाद 2019 में जब पुलवामा हमला हुआ तब भी भारत ने बालाकोट में एयरस्ट्राइक कर दुनिया को अपने इरादे साफ कर दिए थे.

मोदी सरकार ने पाकिस्तान के साथ अच्छे संबंध बनाने की कोशिश की लेकिन वो नहीं बन पाए. वहां की सेना ऐसा नहीं चाहती थी. इमरान खान भी लगातार भारत पर हमला बोलते रहे. जब भी अंतरराष्ट्रीय समुदाय का या भारत दबाव पड़ा तो पाकिस्तान का दौर शुरू करता था लेकिन जब भी बातचीत नतीजे पर पहुंचने लगती तो कहीं आतंकवादी हमला करवा देते थे. इससे सारी बातचीत धरी की धरी रह जाती थी.

मोदी सरकार का पाकिस्तान को लेकर स्पष्ट रुख ये रहा कि हम बातचीत तो करेंगे लेकिन पहले पाकिस्तान आतंकवादियों पर कार्रवाई करे. आतंकवाद के साए में बातचीत नहीं हो सकती. 26/11 के मास्टरमाइंट्स हाफिज सईद, दाऊद इब्राहिम और लखवी जैसे आतंकवादियों को भारत को सौंपा जाए.

'चीन से फिलहाल सामान्य रिश्ते'

दूसरी ओर चीन के साथ भी भारत के संबंध गलवान हिंसा के बाद लगातार तनावपूर्ण चल रहे हैं. चीन जहां खुद को एलएसी के आसपास सड़कें और पुल बनाकर खुद को मजबूत कर रहा है, वहीं भारत भी इन्फ्रास्ट्रक्चर में लगातार सुधार कर रहा है. गलवान हिंसा से पहले 2017 में डोकलाम में भारत और चीन की सेनाएं आमने-सामने आई थीं. तब भी भारत ने अपना मजबूत रुख दिखाया था और बातचीत से मसला सुलझा था. 

इसके बाद जून 2020 में हुई गलवान हिंसा के बाद भी भारत ने चीन के साथ बातचीत का ही रास्ता चुना. दोनों देशों के बीच कई दौर की वार्ता हो चुकी हैं. कई जगहों पर डिसएंगेजमेंट किया गया है. लेकिन कुछ जगहों पर स्थिति पहले जैसी करने को लेकर अब भी वार्ता जारी है. भारत ने अपना रुख चीन को स्पष्ट कर दिया है. भारत चाहता है कि चीन अपनी सेनाएं पीछे हटाए. भारत किसी भी देश को मुंहतोड़ जवाब दे सकता है. लेकिन वह बातचीत का रास्ता चाहता है. भारत के पूर्व आर्मी चीफ बिपिन रावत भी कह चुके हैं कि भारत दो फ्रंट्स पर लड़ने को तैयार है.

Trending news