Ashfaqulla Khan Poetry: अशफाक उल्ला खां की कविताओं में थी देशभक्ति की झलक; पढ़ें
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Ashfaqulla Khan Poetry: अशफाक उल्ला खां की कविताओं में थी देशभक्ति की झलक; पढ़ें

Ashfaqulla Khan Poetry: अशफाक उल्ला खां अपने वक्त के बेहतरीन कवि थे. उन्होंने देशभक्ति पर कई बेहतरीन शेर लिखे हैं. यहां हम अशफाक उल्ला खां और उनकी कविता के बारे में बात कर रहे हैं.

Ashfaqulla Khan Poetry: अशफाक उल्ला खां की कविताओं में थी देशभक्ति की झलक; पढ़ें

Ashfaqulla Khan Poetry: 'दिलवाओ हमें फांसी, ऐलान से कहते हैं, खून से ही हम शहीदों की, फौज बना देंगे. मुसाफिर जो अंडमान के, तूने बनाए जालिम, आजाद ही होने पर, हम उनको बुला लेंगे.', ये कविता है भारत के महान स्वतंत्रता सेनानियों में से एक शहीद अशफाक उल्ला खां की, जिन्होंने स्वतंत्रता की लड़ाई में हिंदू-मुस्लिम एकता की ऐसी मशाल जलाई, जो आज भी जल रही है.

शेर व शायरी से लगाव
22 अक्टूबर 1900 को अशफाक उल्ला खां की पैदाइश शाहजहांपुर के एक मुस्लिम परिवार शफिकुल्लाह खान और मजरुनिस्सा के यहां हुआ था. वे अपने भाई-बहनों में सबसे छोटे थे. जब वह बड़े हुए तो उनको शेर व शायरी से लगाव होने लगा. हालांकि, राजाराम भारतीय नाम के छात्र की गिरफ्तारी ने उन्हें स्वतंत्रता की लड़ाई में शामिल होने के लिए प्रेरित किया. इसी दौरान उनकी मुलाकात राम प्रसाद बिस्मिल से हुई.

स्वतंत्रता की लड़ाई में शामिल
इसी के बाद वे स्वतंत्रता की लड़ाई में शामिल हो गए. वे अपनी कविता के जरिए देश प्रेम के जज्बात को बखूबी बयां करते हैं. अशफाक उल्ला खां लिखते हैं, 'कस ली है कमर अब तो कुछ करके दिखाएंगे, आजाद ही हो लेंगे, या सिर ही कटा देंगे. हटेंगे नहीं पीछे, डरकर कभी जुल्मों से, तुम हाथ उठाओगे, हम पैर बढ़ा देंगे.'

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संवतंत्रता सेनानियों से मिले
साल 1924 में अशफाक उल्ला खां ने स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिलकर हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन नाम का एक संगठन बनाया. इसका मकसद स्वतंत्र भारत की प्राप्ति के लिए सशस्त्र क्रांति का आयोजन करना था. हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के क्रांतिकारियों ने 8 अगस्त 1925 को शाहजहांपुर में एक बैठक की. इस मीटिंग में उन्होंने स्वतंत्रता के आंदोलन को बढ़ावा देने और गतिविधियों को अंजाम देने के लिए काकोरी से सरकारी नकदी ले जा रही एक ट्रेन को लूटने का फैसला किया. इन पैसों से हथियार और गोला-बारूद खरीदकर क्रांतिकारियों की मदद की जानी थी.

ट्रेन को लूटा
राम प्रसाद बिस्मिल सहित दूसरे क्रांतिकारियों ने 9 अगस्त, 1925 को लखनऊ के पास काकोरी में ट्रेन को लूट लिया. बिस्मिल को तो पुलिस ने पकड़ लिया था, लेकिन अशफाक उल्ला खां एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे, जिनका पुलिस पता नहीं लगा पाई. बताया जाता है कि काकोरी कांड के बाद वे छिप गए और बिहार से बनारस चले गए, जहां उन्होंने 10 महीने तक एक इंजीनियरिंग कंपनी में काम किया.

दोस्त ने गद्दारी की
हालांकि, बाद में वे देश से बाहर निकलने की तलाश में दिल्ली चले गए. इसी दौरान उनकी मुलाकात अपने एक दोस्त से हुई, लेकिन उनके दोस्त ने गद्दारी की और खां के बारे में पुलिस को बता दिया. 17 जुलाई 1926 की सुबह उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. अशफाक उल्ला खां को फैजाबाद जेल में रखा गया. बाद में उन पर मुकदमा चला और 19 दिसंबर 1927 को महज 27 साल की उम्र में उन्हें फैजाबाद जेल में फांसी दे दी गई.

अशफाक उल्ला खां की एक मशहूर कविता-

कस ली है कमर अब तो, कुछ करके दिखाएंगे,
आज़ाद ही हो लेंगे, या सर ही कटा देंगे.

हटने के नहीं पीछे, डरकर कभी जुल्मों से,
तुम हाथ उठाओगे, हम पैर बढ़ा देंगे.

बेशस्त्र नहीं हैं हम, बल है हमें चरख़े का,
चरख़े से ज़मीं को हम, ता चर्ख़ गुंजा देंगे.

परवा नहीं कुछ दम की, ग़म की नहीं, मातम की,
है जान हथेली पर, एक दम में गंवा देंगे.

उफ़ तक भी जुबां से हम हरगिज़ न निकालेंगे,
तलवार उठाओ तुम, हम सर को झुका देंगे.

सीखा है नया हमने लड़ने का यह तरीका,
चलवाओ गन मशीनें, हम सीना अड़ा देंगे.

दिलवाओ हमें फांसी, ऐलान से कहते हैं,
ख़ूं से ही हम शहीदों के, फ़ौज बना देंगे.

मुसाफ़िर जो अंडमान के, तूने बनाए, ज़ालिम,
आज़ाद ही होने पर, हम उनको बुला लेंगे.

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