High Court on Unnatural Sex: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने ऐसा फैसला दिया है जिसका व्यापक असर होने के साथ नजीर भी बन सकता है. कोर्ट ने पति और पत्नी के बीच अप्राकृतिक सेक्स को लेकर बड़ी टिप्पणी की है. इसके आधार पर पति को बरी भी कर दिया गया है.
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पति-पत्नी के संबंधों को लेकर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया है. हां, कोर्ट ने एक फैसले में कहा कि पति के अपनी पत्नी के साथ उसकी सहमति के बगैर किसी भी तरह के यौन कृत्य यानी अननैचुरल सेक्स को रेप नहीं कहा जा सकता. उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने सोमवार को एक आदेश में यह टिप्पणी की और आरोपी पति को भारतीय दंड संहिता की तीनों धाराओं 304, 376 और 377 के तहत लगे सभी आरोपों से बरी कर दिया है. कोर्ट ने उसे तत्काल जेल से रिहा करने का आदेश दिया.
इस मामले में अदालत ने पिछले साल 19 नवंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था और सोमवार (10 फरवरी) को फैसला सुनाया. हाई कोर्ट से मिली जानकारी के अनुसार बस्तर (जगदलपुर) के निवासी याचिकाकर्ता पति ने अपनी पत्नी के साथ 11 दिसंबर 2017 की रात को उसकी सहमति के बगैर अप्राकृतिक संबंध बनाए थे.
पति पर आरोप लगाया कि इस कृत्य के कारण पीड़िता को असहनीय पीड़ा हुई और बाद में इलाज के दौरान अस्पताल में उसकी मौत हो गई. पुलिस ने मामला दर्ज कर पति को गिरफ्तार कर लिया. जब मामले की सुनवाई अधीनस्थ अदालत में हुई तब अदालत ने आईपीसी की धारा 377 (अप्राकृतिक यौन कृत्य) 376 (दुष्कर्म) और 304 (गैर इरादतन हत्या) के तहत पति को दोषी ठहराया और उसे 10 साल कारावास की सजा सुनाई.
अदालत के इस फैसले के बाद पति ने हाई कोर्ट में अपील दायर की. मामले की सुनवाई के बाद उच्च न्यायालय ने माना कि अगर पत्नी की आयु 15 वर्ष से कम नहीं है तो पति द्वारा किसी भी यौन संबंध या यौन कृत्य को दुष्कर्म नहीं कहा जा सकता.
न्यायालय ने यह भी माना कि इन परिस्थितियों में पत्नी की सहमति स्वमेव महत्वहीन हो जाती है, इसलिए अपीलकर्ता पति के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 और 377 के तहत अपराध नहीं बनता. इसी प्रकार आईपीसी की धारा 304 के तहत भी अधीनस्थ अदालत ने कोई विशेष निष्कर्ष दर्ज नहीं किया है. उच्च न्यायालय के फैसले में याचिकाकर्ता पति को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया है तथा उसे तत्काल जेल से रिहा करने का आदेश दिया गया है.