अदालत तक पहुंच को हथियार बनाया जा रहा... उपराष्ट्रपति धनखड़ ने किस पर साधा निशाना?
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अदालत तक पहुंच को हथियार बनाया जा रहा... उपराष्ट्रपति धनखड़ ने किस पर साधा निशाना?

Jagdeep Dhankhar News: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने संसद में जनप्रतिनिधियों पर व्हिप लगाना उनकी लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति को अवरुद्ध करना है.  उन्होंने कहा कि ज्यूडिशियरी तक पहुंच के लिए ‘हथियार’ बनाया जा रहा है. 

अदालत तक पहुंच को हथियार बनाया जा रहा... उपराष्ट्रपति धनखड़ ने किस पर साधा निशाना?

Jagdeep Dhankhar News: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने बुधवार को कहा कि ज्यूडिशियरी तक पहुंच के लिए ‘हथियार’ बनाया जा रहा है और यह भारत के शासन और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए एक बड़ी चुनौती है. धनखड़ ने यह भी कहा कि संस्थाएं अपने अधिकार क्षेत्र में काम नहीं कर रही हैं. उनका यह भी कहना था कि संसद में जनप्रतिनिधियों पर व्हिप लगाना उनकी लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति को अवरुद्ध करना है. 

उन्होंने कहा, ‘हर दिन आप देखते हैं कि सलाहें जारी की जा रही हैं, कार्यकारी कार्य ऐसे निकायों द्वारा किए जा रहे हैं जिनके पास उन्‍हें करने का कोई अधिकार क्षेत्र या न्यायिक अधिकार अथवा क्षमता नहीं है। उनका इशारा न्यायपालिका की ओर था। उन्होंने कहा, ‘‘इसे आम आदमी की भाषा में कहें तो, एक तहसीलदार कभी प्राथमिकी दर्ज नहीं कर सकता...’ 

उपराष्ट्रपति ने यहां ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ डेमोक्रेटिक लीडरशिप’ के छात्रों को संबोधित करते हुए ये टिप्पणियां कीं. उन्होंने कहा, ‘देश में हमारे पास एक मौलिक अधिकार है, और अधिकार यह है कि हम न्यायपालिका तक पहुंच सकते हैं. यह एक मौलिक अधिकार है, लेकिन पिछले कुछ दशकों में न्यायपालिका तक पहुंच को हथियार बना लिया गया है... यह हमारे शासन, हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए एक बड़ी चुनौती है.’

धनखड़ का मानना ​​है कि संस्थाएं अन्य संस्थाओं के सामने झुक रही हैं, ‘और ऐसा सुविधा के लिए किया जा रहा है.’ उन्होंने कहा,‘खुश करने के ये तरीके अल्पकालिक फायदा तो दे सकते हैं, लेकिन लंबे वक्त में ये संस्‍थानों के आंतरिक तंत्र को ऐसी क्षति पहुंचा सकते हैं, जिसकी कल्‍पना भी नहीं की जा सकती.’

व्हिप क्यों होना चाहिए? 
संसद में ‘व्हिप’ के प्रावधान पर सवाल उठाते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘व्हिप क्यों होना चाहिए? व्हिप का मतलब है कि आप अभिव्यक्ति पर अंकुश लगा रहे हैं, आप स्वतंत्रता पर अंकुश लगा रहे हैं, आप अपने प्रतिनिधि को आदेश पालक बना रहे हैं.’ उन्होंने कहा, ‘आप ऐसे व्यक्ति को अपने दिमाग का इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं देते हैं... राजनीतिक दलों से लोकतंत्र को बढ़ावा देने की अपेक्षा की जाती है, लेकिन क्या निर्वाचित प्रतिनिधियों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है? व्हिप इसमें बाधा डालता है.’ 

लोग ‘मर्यादा’ शब्द भूल गए हैं: उपराष्ट्रपति
संसद में व्यवधानों के संबंध में धनखड़ ने कहा कि एक वक्त यह लोकतंत्र का मंदिर था, अब कुश्ती का मैदान बन गया है. उन्होंने कहा, ‘लोग ‘मर्यादा’ शब्द भूल गए हैं और अब गरिमा की कोई अवधारणा नहीं रह गई है.’ ( भाषा इनपुट के साथ ) 

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