बेट द्वारका में चावल दान करने वाला क्यों नहीं होता कभी गरीब? श्रीकृष्ण और सुदामा से है खास कनेक्शन
Advertisement
trendingNow12634240

बेट द्वारका में चावल दान करने वाला क्यों नहीं होता कभी गरीब? श्रीकृष्ण और सुदामा से है खास कनेक्शन

Bet Dwarka: भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा से जुड़ा एक स्थान ऐसा है, जिसको लेकर मान्यता है कि यहां चावल का दान करने वाला कभी गरीब नहीं होता है. आइए जानत हैं उस जगह के बारे में जहां चावल दान करने के गरीबी दूर होने की मान्यता है. 

बेट द्वारका में चावल दान करने वाला क्यों नहीं होता कभी गरीब? श्रीकृष्ण और सुदामा से है खास कनेक्शन

Bet Dwarka Rice Donation Rituals: अधिकतर लोग द्वारका को वह स्थान मानते हैं जहां गोमती नदी के तट पर भगवान द्वारकाधीश का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है, लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि द्वारका को तीन प्रमुख भागों में विभाजित किया गया है- मूल द्वारका, गोमती द्वारका और बेट द्वारका. मूल द्वारका को सुदामापुरी भी कहा जाता है, क्योंकि यही वह स्थान है जहां भगवान श्रीकृष्ण के मित्र सुदामा का निवास था. गोमती द्वारका वह क्षेत्र है जहां से भगवान श्रीकृष्ण राजकाज संभालते थे. बेट द्वारका भगवान श्रीकृष्ण का निवास स्थान था, जिसे भेंट द्वारका भी कहा जाता है. इस जगह को लेकर ऐसी मान्यता है कि यहां पर चावल का दान करने से गरीबी दूर हो जाती है. आइए जानते हैं इस स्थान पर श्रीकृष्ण और सुदामा से क्या कनेक्शन है. 

कैसे नाम पड़ा बेट द्वारका?

‘भेट’ का अर्थ मुलाकात और उपहार दोनों होता है. मान्यता है कि इसी स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण और उनके प्रिय मित्र सुदामा का पुनर्मिलन हुआ था, इसलिए इसे भेंट द्वारका कहा गया. गुजराती भाषा में इसे बेट द्वारका कहते हैं. यह स्थान गोमती द्वारका से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यहां स्थित मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की प्रतिमाओं की पूजा होती है. मान्यता है कि द्वारका यात्रा तभी पूर्ण होती है जब भक्त भेंट द्वारका के दर्शन करता है.

बेट द्वारका में चावल दान की परंपरा

पौराणिक मान्यता के अनुसार, द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण का महल यहीं स्थित था. द्वारका के नायक और न्यायाधीश स्वयं भगवान श्रीकृष्ण थे. आज भी माना जाता है कि द्वारका नगरी उन्हीं की देखरेख में है, इसलिए भक्तजन उन्हें द्वारकाधीश के नाम से पुकारते हैं.

जब सुदामा भगवान श्रीकृष्ण से मिलने आए थे, तो उन्होंने अपने मित्र के लिए चावल की एक छोटी सी पोटली लेकर आए थे. प्रेमपूर्वक वही चावल ग्रहण कर भगवान श्रीकृष्ण ने सुदामा की दरिद्रता समाप्त कर दी थी. कहते हैं कि इसी वजह से आज भी यहां चावल दान करने की परंपरा है. मान्यता है कि मंदिर में चावल दान करने से व्यक्ति कई जन्मों तक गरीबी का सामना नहीं करता.

बेट द्वारका मंदिर की खासियत

कहा जाता है कि जब संपूर्ण द्वारका नगरी समुद्र में डूब गई थी, तब भेंट द्वारका सुरक्षित रही. यह क्षेत्र आज भी एक टापू के रूप में अस्तित्व में है. यहां स्थित मंदिर का निर्माण महान संत वल्लभाचार्य ने लगभग 500 साल पहले करवाया था. मंदिर में स्थित भगवान द्वारकाधीश की प्रतिमा के बारे में मान्यता है कि रानी रुक्मिणी ने इसे स्वयं तैयार किया था. मंदिर का अपना एक अन्न क्षेत्र भी है, जहां भक्तों को प्रसाद वितरण किया जाता है. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

Trending news