Delhi elections: मतदान में महिलाओं की भागीदारी में काफी बढ़ोतरी हुई है. लेकिन विधानसभा में उनका प्रतिनिधित्व अभी भी बेहद कम है. इसलिए कुछ चीजें महज एक दिखावा सा प्रतीत होता है. जबकि मौजूदा समय में एक महिला ही सीएम की कुर्सी पर बैठी हुई हैं.
Trending Photos
Women Representation in Delhi: दिल्ली विधानसभा चुनाव एकदम नजदीक आ गया है और राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ गई हैं. राजनीतिक पंडित अब आंकड़ों से खेलना शुरू कर चुके हैं. इन सबके बीच महिलाओं से जुड़ा एक ऐसा भी आंकड़ा है जिसके बारे में जान लेना चाहिए. महिलाओं की आबादी चुनावी प्रक्रिया में तो अपनी अहम भूमिका निभा रही है. लेकिन सवाल यह उठता है कि जब महिलाओं का मतदान में इतना बड़ा योगदान है, तो फिर दिल्ली विधानसभा में महिला विधायकों की संख्या अब भी क्यों इतनी कम है? 1993 से लेकर अब तक कुल मिलाकर 39 महिलाएं ही दिल्ली विधानसभा में चुनी गई हैं, जबकि महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण की बात होती रही है. जबकि उनका मतदान प्रतिशत बढ़कर 60 प्रतिशत से भी ज्यादा हो चुका है. तो इस तरफ पार्टियों का ध्यान क्यों नहीं जा रहा है.
दरअसल, इस सवाल से जुड़े कुछ आंकड़े खुद में एक बड़ा सवाल खड़ा करते हैं कि आखिर महिलाओं को इतनी बड़ी संख्या में प्रतिनिधित्व क्यों नहीं मिल पा रहा है. क्या ये महज एक दिखावा है या वाकई महिला नेतृत्व के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं हो रहा है.
चुनाव के लिए तैयारियां जोरों पर हैं जो अगले महीने होंगे. इस चुनाव की खास बात है कि पिछले तीन दशकों में जहां महिलाओं की मतदान में भागीदारी में काफी बढ़ोतरी हुई है. लेकिन विधानसभा में उनका प्रतिनिधित्व अभी भी बेहद कम है. इसलिए कुछ चीजें महज एक दिखावा सा प्रतीत होता है. जबकि मौजूदा समय में एक महिला ही सीएम की कुर्सी पर बैठी हुई हैं.
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक 1998 से 2008 तक के चुनावों में महिलाओं का मतदान प्रतिशत 56 प्रतिशत या उससे कम रहा था, लेकिन पिछले तीन चुनावों 2013, 2015 और 2020 में यह आंकड़ा 60 प्रतिशत से ऊपर चला गया. मतदान प्रतिशत का मतलब है उन मतदाताओं का औसत प्रतिशत जो मतदान करने के लिए मतदान केंद्रों तक पहुंचे. 60 प्रतिशत का मतलब है कि 100 में से 60 लोग मतदान करने आए थे. दिल्ली में महिला मतदाताओं की संख्या और उनके चुनावी भागीदारी में महत्वपूर्ण वृद्धि देखने को मिली है, लेकिन विधानसभा में चुनी गई महिलाओं की संख्या अब भी एकल अंकों में है.
इन सबके बावजूद भी दिल्ली विधानसभा में महिला प्रतिनिधित्व बेहद कम है. 1998 के विधानसभा चुनाव में नौ महिलाओं को विधानसभा में भेजा गया था, जो अब तक का सबसे अधिक संख्या है. 1993 से लेकर अब तक 491 महिलाएं दिल्ली विधानसभा चुनावों में प्रत्याशी बनीं, लेकिन इनमें से करीब 80 प्रतिशत, यानी 391 महिलाओं ने अपने जमानत जमा दिए.
दिल्ली चुनावों में महिलाओं की अहमियत को देखते हुए क्या यह बात सही है कि प्रमुख राजनीतिक दल अपनी रणनीतियों में महिलाओं को आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं. आम आदमी पार्टी AAP और कांग्रेस ने महिलाओं के लिए मासिक वित्तीय योजना देने का वादा किया है, जबकि बीजेपी भी अन्य राज्यों में चल रही योजनाओं के जैसे ही दिल्ली में ऐसी योजना लागू करने की बात कर रही है. 2020 चुनाव से पहले तो AAP ने महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा योजना की शुरुआत की थी. इस बार भी ऐलानों की झड़ी लगा दी है.
रिपोर्ट के मुताबिक 2013 के बाद दिल्ली में महिला और पुरुष मतदाताओं की भागीदारी में बड़ा बदलाव आया है. 2020 में महिलाओं की औसत मतदान प्रतिशत 62.51 प्रतिशत रही, जबकि पुरुषों का प्रतिशत 62.59 प्रतिशत था. यह आंकड़ा 1993 के चुनाव में सबसे ज्यादा था, जब पुरुषों का मतदान 64.56 प्रतिशत था, जबकि महिलाओं का केवल 58.27 प्रतिशत था.
यह संयोग है कि 2025 के विधानसभा चुनाव में AAP, बीजेपी और कांग्रेस ने प्रत्येक ने नौ महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. हालांकि इन तीनों दलों में कोई भी ऐसी सीट नहीं है जहां सभी महिला उम्मीदवार हों. AAP से सरिता सिंह, अंजना परचा, राखी बिडलान, बंधना कुमारी, प्रीति तोमर, पूजा नरेश बाल्यान, अतिशी, प्रमिला टोकस और धनवती चंदेला उम्मीदवार हैं. जबकि बीजेपी से रिंकु, रेखा गुप्ता, शिखा राय, पूनम शर्मा, प्रियंका गौतम, नीलम पहलवान, श्वेता सैनी, दीप्ति इंदोरा और उर्मिला गंगवाल उम्मीदवार हैं. कांग्रेस से अरुणा कुमारी, रागिनी नायक, अरीबा खान, अलका लाम्बा, सुषमा यादव, हरबानी कौर, पुष्पा सिंह, सुरेश्वती चौहान और कृष्णा तीरथ मैदान में हैं.
फिलहाल कुल मिलाकर, 2025 के चुनाव में तीन प्रमुख दलों से 27 महिलाएं चुनावी मैदान में हैं, जो 2020 के चुनाव में 24 थीं. 2020 में चुनी गई आठ महिला विधायक सभी AAP से थीं. बता दें कि दिल्ली में विधानसभा चुनाव 5 फरवरी 2025 को होंगे और मतगणना 8 फरवरी को की जाएगी. इन चुनावों में महिलाओं की बढ़ती भूमिका उनके अधिकारों और उनके मुद्दों के प्रति बढ़ती चर्चा का भी प्रमाण है.