लालू-तेजस्वी सावधान! 'कफन' बांधकर निकल पड़ी है कांग्रेस, जीत का माध्यम बने न बने, हार का कारण जरूर बन सकती है
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लालू-तेजस्वी सावधान! 'कफन' बांधकर निकल पड़ी है कांग्रेस, जीत का माध्यम बने न बने, हार का कारण जरूर बन सकती है

Rahul Gandhi Startegy: राहुल गांधी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में यह साबित कर दिया है कि कांग्रेस क्षेत्रीय दलों की जीत का माध्यम बने या न बने, उन्हें हराने की सोच ले तो फिर उन्हें बहुत भारी पड़ सकता है. दिल्ली चुनाव में कांग्रेस अलग थलग पड़ गई थी लेकिन अब शायद ही कोई क्षेत्रीय दल उसे नजरंदाज करने की कोशिश करे.  

लालू-तेजस्वी सावधान! 'कफन' बांधकर निकल पड़ी है कांग्रेस, जीत का माध्यम बने न बनें, हार का कारण जरूर बन सकती है

Bihar Politics: राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव को कांग्रेस का संदेश मिल गया होगा! वो संदेश दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के माध्यम से गया है. कांग्रेस की ओर से सभी क्षेत्रीय दलों को साफ संदेश है, जीत का माध्यम बने या न बनें, हार के कारण जरूर बन सकते हैं. और यह संदेश क्षेत्रीय दलों के लिए एटम बम से कम नहीं है. राहुल गांधी ने अपनी एक रणनीति से राजद समेत सभी क्षेत्रीय दलों में खलबली मचा दी है. अरविंद केजरीवाल विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस को इंडिया ब्लॉक से अलग थलग करने चले थे, अब वो खुद अपनी पार्टी को बचाने के संकट से जूझेंगे. लालू प्रसाद यादव इंडिया ब्लॉक की लीडरशिप ममता बनर्जी को सौंपने के हिमायती बन रहे थे और अब उन्हें बिहार में महागठबंधन में पहले सीट शेयरिंग और फिर विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने की रणनीति बनानी होगी. ममता बनर्जी इंडिया ब्लॉक का लीडरशिप चाह रही थीं, लेकिन उन्हें भी अपना राज्य बचाने की चुनौती से जूझना होगा. 

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लोकसभा चुनाव 2024 से ही सभी क्षेत्रीय दल कांग्रेस को दोयम दर्जे का समझ रहे थे. कांग्रेस उनके लिए लायबिलिटी बनी नजर आ रही थी. कांग्रेस को मजबूर बताकर या दर्शाकर क्षेत्रीय दल लोकसभा चुनाव से पहले पहले मध्य प्रदेश तो लोकसभा चुनाव के बाद हरियाणा में सीटें मांगते दिखे. महाराष्ट्र में तो कांग्रेस को सहयोगी दलों के आगे झुकना भी पड़ा पर मध्य प्रदेश और हरियाणा में कांग्रेस ने किसी की न सुनी. हालांकि वह खुद ही चुनाव हार गई लेकिन सहयोगी दलों के झांसे में नहीं आई. दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने खुद ही एकला चलो का ऐलान कर दिया था तो कांग्रेस के सामने कोई और रास्ता था नहीं और वह भी एकला चलो के रास्ते पर चलते हुए मैदान में कूद पड़ी. पहली बार कांग्रेस क्षेत्रीय दलों पर कांग्रेस की निर्भरता को खत्म करते हुए राहुल गांधी के नेतृत्व में अपनी जमीन तलाशती दिख रही है. 

दिल्ली विधानसभा चुनाव में इंडिया ब्लॉक में शामिल सभी सहयोगी दलों ने कांग्रेस को किनारे कर दिया था और आम आदमी पार्टी को नैतिक समर्थन दिया था. समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने तो बाकायदा आम आदमी पार्टी के पक्ष में रोडशो भी किया था. शरद पवार, उमर अब्दुल्ला, उद्धव ठाकरे, एमके स्टालिन, लालू प्रसाद यादव, अखिलेश यादव और ममता बनर्जी जैसे नेताओं ने खुलकर अरविंद केजरीवाल के पक्ष में अपनी राय रखी थी और एक तरह से अपने अपने स्टेट के लोगों से आम आदमी पार्टी को समर्थन करने की अपील की थी. हालांकि, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने दिल्ली में उतनी मेहनत नहीं की, जितने की अपेक्षा की जा रही थी, लेकिन इतने में ही आम आदमी पार्टी के साथ खेला हो गया. अरविंद केजरीवाल को दिल्ली की सत्ता से बाहर करके राहुल गांधी ने बिहार में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव को भी एक तरह से संदेश देने की कोशिश की है, जिनलोगों ने ममता बनर्जी को इंडिया ब्लॉक का नेतृत्व सौंपने का समर्थन किया था.

दिल्ली चुनाव के दरम्यान ही राहुल गांधी दो बार बिहार के दौरे पर आए. पहली बार 18 जनवरी को और दूसरी बार 5 फरवरी को. अपने दोनों ही दौरों में राहुल गांधी ने तेजस्वी यादव की सबसे बड़ी उपलब्धि को एक तरह से ठोकर मार दिया. तेजस्वी यादव बिहार में नीतीश कुमार के साथ अपने 17 महीने के सत्ताकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि जातीय जनगणना को बताते नहीं अघाते हैं. राहुल गांधी ने उसी जातीय जनगणना को फर्जी करार दे दिया. यही नहीं, बिहार की जातीय जनगणना को फर्जी करार देते हुए राहुल गांधी यहां तक कह गए कि जातीय जनगणना होगी लेकिन बिहार की तर्ज पर नहीं, तेलंगाना की तर्ज पर. ऐसा बोलकर राहुल गांधी ने लालू और तेजस्वी के सबसे बड़े हथियार को भोथड़ा साबित करने की कोशिश की. यह भी एक तरह से लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव के लिए किसी संदेश से कम नहीं था. इसके अलावा, राहुल गांधी ने स्व. जगलाल चौधरी के बहाने कांग्रेस से छिटके दलित वोटरों को साधने की भी कोशिश की. 

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राहुल गांधी के इस कदम से लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव के माथे पर बल पड़ गए होंगे, क्योंकि कांग्रेस से जो वोटर खिसके हैं, वहीं अब राजद के कोर वोटर बन गए हैं. अगर राहुल गांधी कांग्रेस के वोटरों को साधने की कोशिश करते हैं तो यह राजद के लिए धक्का लगने जैसा होगा. इस बार लालू प्रसाद यादव ऐन केन प्रकारेण तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनते देखना चाहते हैं, लेकिन अगर राहुल गांधी का ऐसा ही रुख रहा और कांग्रेस को वह संतुष्ट नहीं कर पाए तो बिहार में वहीं हो सकता है, जो दिल्ली में हुआ है. कांग्रेस महागठबंधन से अलग होकर चुनाव मैदान में जा सकती है और राजद को बड़ा झटका दे सकती है. राहुल गांधी अगर राजद को नुकसान पहुंचाने की ठान लें तो उन्हें बहुत ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी होगी. उन्हें केवल पप्पू यादव और कन्हैया कुमार को बिहार में तैनात करना होगा. अगर कांग्रेस ऐसा कर पाने में सफल रहती है तो जाहिर है कि लालू प्रसाद यादव अपने मकसद में कामयाब नहीं होंगे.

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