Aligarh Shahi Jama Masjid: भारत की बहुत आलीशान मस्जिद है जिसमें 100-200 नहीं 5 हजार लोग नमाज पढ़ सकते हैं. इस मस्जिद को खास इसलिए भी कह रहे हैं क्योंकि यहां बने हुए 17 गुंबद सोने से बने हैं. और ये अनोखी जामा मस्जिद उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में बनी है. आइए जानते हैं इसके बारे में
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Aligarh Jama Masjid: अलीगढ़ की जामा मस्जिद इस समय सुर्खियों में है. इस मस्जिद को किसने बनाया , किसकी जमीन पर बनाया गया इसको लेकर तमाम तरह की बातें चल रही है. कोर्ट में केस भी दायर हो गया है. मुगल वंशज अपनी जमीन होने का दावा कर रहे हैं तो कई हिंदूवादी नेता इसको सरकारी जमीन पर बना हुआ बता रहे हैं. चाहें जो भी हो सोने से जड़ी इस मस्जिद की सुंदरता और भव्यता देखने लायक है. आइए जानते हैं इस आलीशान मस्जिद के इतिहास के बारे में.
मस्जिद का इतिहास क्या है
मुगलकाल में मुहम्मद शाह (1719-1728) के शासनकाल में कोल के गवर्नर साबित खान ने 1724 में इस मस्जिद का निर्माण शुरू कराया था. 1728 में मस्जिद बनकर तैयार हो गई थी, जबकि जामा मस्जिद में 1857 की क्रांति के 73 शहीदों की कब्रें भी हैं. इस पर भारतीय पुरातत्व विभाग कई साल पहले सर्वे भी कर चुका है.
किसने कराया था मस्जिद का निर्माण
अलीगढ़ की जामा मस्जिद कोल के गवर्नर साबित खान जंगे बहादुर ने बनवाया था. इसका निर्माण 1724 में शुरू हुआ था और 1728 में बनकर तैयार हुई थी. यह अलीगढ़ की सबसे पुरानी और भव्य मस्जिदों में से एक है. इस मस्जिद में 1857 की क्रांति के 73 शहीदों की कब्रें हैं. इस मस्जिद के गेट और चारों कोनों पर छोटी-छोटी मीनारें हैं और इस मस्जिद में एक साथ 5,000 लोग नमाज़ पढ़ सकते हैं. ऐसा भी कहा जाता है जामा मस्जिद का निर्माण ताजमहल बनाने वाले मुख्य इंजीनियर ईरान के अबू ईसा अंफादी के पोते ने निर्माण किया था.
इस मस्जिद को लेकर कई विवाद
कुछ लोगों का दावा है कि यह मस्जिद पहले हिंदू मंदिर थी. कुछ लोगों का दावा है कि इसे ताजमहल बनाने वाले आर्किटेक्ट के वंशज ने बनाया था. इस मस्जिद को छोटा ताजमहल भी कहा जाता है. इस जामा मस्जिद और ताजमहल में भी कई समानताएं भी हैं. अवधी व मुगलकालीन वास्तुकला का संगम है.
5 से 6 क्विंटल सोने से जड़ी मस्जिद
इस मस्जिद में लगभग 5 से 6 क्विंटल सोना लगा. 17 गुंबदों को ठोस सोने से बनाया गया है. जबकि ताजमहल में केवल सोने की परत चढ़ाई गई है. इस मस्जिद में महिलाओं के अलग से नमाज अदा करने की जगह बनी हुई है.साथ ही यह मस्जिद शहर की सबसे ऊंची जगह पर बनी हुई है. यानी ये मस्जिद बाढ़ या बारिश में कभी नहीं डूब सकती.
मुगलकालीन वास्तुकाल
जामा मस्जिद को अवधी और मुगलकालीन वास्तुकाल में बनाया गया. अलीगढ़ की ये मस्जिद अवधी और मुगलकालीन वास्तुकला का अनूठा संगम है. मस्जिद के गेट और चारों कोनों पर भी छोटी-छोटी मीनारें हैं. कहते हैं शहीदों की बस्ती अलीगढ़ की यह जामा मस्जिद देश की पहली मस्जिद है. जहां पर 1857 की क्रांति के 73 शहीदों की कब्रें हैं. इसलिए इसे गंज-ए-शहीदान यानी शहीदों की बस्ती कहते हैं. यह अलीगढ़ की एक ऐसी इकलौती मस्जिद है जब पूरा अलीगढ़ डूब जाएगा तब कहीं जाकर इस मस्जिद की सीढ़ियों तक पानी पहुंचेगा.
अब जानते हैं क्या है विवाद
अलीगढ़ निवासी भ्रष्टाचार विरोधी सेना के अध्यक्ष और आरटीआई एक्टिविस्ट पंडित केशव देव ने मस्जिद को लेकर एक वाद दायर किया है. जिसमें उन्होंने दावा किया है कि शाही जामा मस्जिद सार्वजनिक भूमि पर बनी हुई है. ऊपरकोट स्थित जामा मस्जिद को लेकर न्यायालय में चल रहे विवाद में मुगल शासक बादशाह शाह जफर के वंशज प्रिंस याकूब हुबीबउद्दीन तुर्सी भी कूद पड़े हैं. मुगल वंशजों ने शाही जामा मस्जिद पर मालिकाना हक जताया है. मुगल शासक बहादुर शाह जफर के वंशज पंडित केशव देव ने इस वाद में शाही जामा मस्जिद के मुतवल्ली को दूसरा पक्ष बनाया था, लेकिन अब इस मस्जिद के मालिकाना हक लेकर एक नया विवाद सामने आया है.
क्या है तर्क
प्रिंस याकूब हबीबुद्दीन तुशी का तर्क है कि देश में अधिकतर प्रमुख मस्जिद मुगल शासन काल में बनीं थी. इसमें अलीगढ़ की जामा मस्जिद भी शामिल थी. ऐसे में इस मस्जिद पर इनका मालिकाना हक है, लेकिन इसमें उन्हें इसमें पक्षकार नहीं बनाया गया है. ऐसे में वह इसमें पक्षकार बनने के लिए कोर्ट में अपील दायर करेंगे. उनका कहना है कि कुछ लोग जानबूझ कर अमन-चैन व शांति व्यवस्था को खराब करने के लिए ऐसे मामले उठा हैं.
सरकारी जमीन पर मस्जिद बनने का दावा
इससे पहले पंडित केशव देव ने पिछले दिनों सीनियर सिविल जज के कोर्ट में वाद दायर किया था. इसमें उन्होंने जामा मस्जिद को प्राचीन हिंदू मंदिर होने का दावा किया था. पंडित केशव देव ने दावा किया है कि मस्जिद का निर्माण सरकारी जमीन पर किया गया है, इस मामले में उन्होंने मस्जिद मुतव्वली एम सूफियान को प्रतिवादी बनाया है. फिलहाल इस मामले में 15 फरवरी को कोर्ट में सुनवाई होनी है.
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