Sant Ravidas Jayanti 2025: मीराबाई कैसे बनीं संत रविदास की शिष्या? कबीर से लेकर सिकंदर लोदी भी थे मुरीद
Advertisement
trendingNow0/india/up-uttarakhand/uputtarakhand2641807

Sant Ravidas Jayanti 2025: मीराबाई कैसे बनीं संत रविदास की शिष्या? कबीर से लेकर सिकंदर लोदी भी थे मुरीद

Sant Ravidas Jayanti 2025: 12 फरवरी को संत रविदास जी का जन्मोत्सव मनाया जाएगा. हर साल माघ माह की पूर्णिमा तिथि के दिन संत रविदास जयंती मनाई जाती है. ऐसे में जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी रोचक कहानी.

Sant Ravidas Jayanti 2025

Sant Ravidas Jayanti 2025:  माघ माह की पूर्णिमा तिथि को संत रविदास जयंती है. वैसे तो भारत के कई संतों ने समाज में भाईचारा बढ़ाने के लिए अपना अहम योगदान दिया है, लेकिन संत रविदास जी का अलग स्थान है. उनका नाम संतों में अग्रगण्य है. संत रविदास का जन्म 1398 में काशी (उत्तरप्रदेश) हुआ था. वे बचपन से समाज की बुराइयों को दूर करने में जुटे रहे. उनके प्रभाव से सिकंदर लोधी भी नहीं बचा और उन्हें दिल्ली आने का निमंत्रण भेज दिया. मध्ययुगीन साधकों में उनका अपना अलग स्थान है. कबीर की तरह रैदास भी संत कोटि के प्रमुख कवियों में विशेष स्थान रखते हैं. 

मीराबाई भी संत की शिष्या
मीराबाई भी संत रविदास जी की शिष्या थीं. कहते हैं मीरा के गुरु रैदास ही थे उनके जीवन की छोटी-छोटी घटनाओं से उनके विशिष्ठ गुणों का पता चलता है. मीराबाई को संत रविदास से ही प्रेरणा मिली थी और फिर उन्होंने भक्ति के मार्ग पर चलने का निर्णय लिया. मीराबाई के एक पद में उनके गुरु का जिक्र मिलता है - 'गुरु मिलिआ संत गुरु रविदास जी, दीन्ही ज्ञान की गुटकी.' 'मीरा सत गुरु देव की करै वंदा आस.जिन चेतन आतम कहया धन भगवन रैदास.'

'संतन में रविदास' कहकर दी मान्यता
संत रविदास अपनी कई रचनाओं के जरिए समाज की बुराइयों को दूर करने में अपना योगदान दिया. उन्होंने समाज में फैली छुआ-छूत, ऊंच-नीच दूर करने में भी अपनी भूमिका निभाई. बचपन से ही रविदास का झुकाव संत मत की तरफ रहा. वे संत कबीर के गुरुभाई थे. 'मन चंगा तो कठौती में गंगा' यह उनकी पंक्तियां मनुष्य को बहुत कुछ सीखने का मौका देती है. कबीर ने 'संतन में रविदास' कहकर इन्हें मान्यता दी है. मूर्तिपूजा, तीर्थयात्रा जैसे दिखावे में रविदास जी का बिल्कुल भी विश्वास नहीं था. वह व्यक्ति की आंतरिक भावनाओं और आपसी भाईचारे को ही सच्चा धर्म मानते थे.

काव्य-रचनाओं की भाषा
रिपोर्ट्स की मानें तो रैदास ने अपनी काव्य-रचनाओं में सरल, व्यावहारिक ब्रजभाषा का प्रयोग किया है. जिसमें अवधी, राजस्थानी, खड़ी बोली और उर्दू-फारसी के शब्दों का भी मिश्रण है. रैदास को उपमा और रूपक अलंकार विशेष प्रिय रहे हैं. सीधे-सादे पदों में संत कवि ने हृदय के भाव बड़ी सफाई से प्रकट किए हैं.  

यह भी पढ़ें: Magh Purnima 2025: माघी पूर्णिमा स्नान का शुभ मुहूर्त कितने घंटे, श्लेषा नक्षत्र और सौभाग्य योग में होगा महास्नान

Trending news