Ravidas Jayanti 2025: माघ पूर्णिमा पर संत रविदास जयंती मनाई जा रही है. वाराणसी में उनके गांव बेगमपुरा की भव्यता दिख रही है. संत रविदास के धाम में 20 लाख रैदासी हैं और 5 हजार सेवादार व्यवस्था संभाल रहे हैं. पढ़िए पूरी डिटेल
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Ravidas Jayanti 2025: आज माघ पूर्णिमा के मौके पर रविदास जयंती मनाई जा रही है. इस दिन वाराणसी में उनके गांव बेगमपुरा की भव्यता देखने को मिल रही है. 2 किलोमीटर के एरिया में 5 लाख रैदासी ठहरे हुए हैं. रविदास जयंती कार्यक्रम में 15-20 लाख श्रद्धालुओं के शामिल होने की संभावना है. सिर्फ पंजाब से ही 5 लाख से ज्यादा लोग पहुंचेंगे. 5 हजार सेवादार व्यवस्था संभाल रहे हैं. हर साल माघ पूर्णिमा के दिन संत रविदास जी की जयंती पर लाखों श्रद्धालु यहां दर्शन करने आते हैं. इस दौरान भजन-कीर्तन, शोभायात्रा और विशेष पूजा-अर्चना होती है. 110 करोड़ की पालकी में शोभा यात्रा निकलेगी.
कैसी है कार्यक्रम की तैयारी?
खासतौर पर श्रद्धालुओं के साथ देश की शीर्ष राजनीतिक हस्तियां भी यहां पर अपनी हाजिरी लगाने आती हैं. इस साल 10 लाख श्रद्धालुओं के आने की संभावना है. हरियाणा, पंजाब, बिहार, झारखंड समेत अन्य राज्यों से लगभग 5 हजार की संख्या में पहुंचे सेवादार यहां 10 लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं की सेवा करते रहे. बताया जा रहा है कि यहां पर 6 से ज्यादा भट्ठियों पर रोटियां पकाई गई हैं. करीब 20 लाख से अधिक रोटियां भक्तों के लिए बनाई जा रही है. लगभग 15 क्विंटल से ज्यादा नमक की खपत होगी. इसमें शामिल सेवादार खाने की व्यवस्था, सुरक्षा की व्यवस्था, दर्शन करने की व्यवस्था, ट्रैफिक व्यवस्था के साथ-साथ अन्य व्यवस्थाओं को देखते हैं.
लाखों की तादाद में मत्था टेकेंगे अनुयायी
संत रविदास मंदिर में खाना तैयार किया जा रहा है. श्रद्धालुओं की सेवा के लिए पंजाब से 1000 क्विंटल अनाज, मिर्जापुर और मध्य प्रदेश से 50 क्विंटल लकड़ी वाराणसी पहुंच चुकी है. बताया जा रहा है. अमेरिका, लंदन, ऑस्ट्रेलिया, दुबई, कनाडा, फ्रांस, थाईलैंड से भी अनुयायी पहुंचे हैं. इन्हीं देशों से और अनुयायी सोमवार को पहुंच जाएंगे. 12 फरवरी को लाखों की तादाद में अनुयायी मत्था टेकेंगे.
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बनारस का स्वर्ण मंदिर
संत रविदास जी का जन्म वाराणसी के सीर गोवर्धन गांव में हुआ था. उनका जन्म 1398 में इस जगह माघ पूर्णिमा के दिन हुआ था. यहां भव्य श्री गुरु रविदास जन्म स्थान मंदिर बना हुआ है, जिसे काशी का दूसरा स्वर्ण मंदिर भी कहा जाता है. गुरु रविदास के जन्मस्थान मंदिर की शोभा बढ़ाने के लिए इसमें 200 किलोग्राम से अधिक सोना लगाया गया है. इसकी भव्यता और आध्यात्मिक आभा भक्तों को बहुत आकर्षित करती है. रैदासियों के गुरु डेरा संत सरवन दास जी महाराज ने इस मौजूदा मंदिर का निर्माण कराया था. 1965 के आषाढ़ मास में इसकी नींव रखी गई थी और 7 साल बाद यानी 1972 में यह संत रविदास का यह मंदिर बनकर तैयार हुआ.
मंदिर में सोने की पालकी
संत रविदास मंदिर में 130 किलो सोने की पालकी रखी हुई है. पालकी को यूरोप के शिष्यों ने बनवाया था. इस पालकी को साल में एक बार जयंती के दिन ही मंदिर में निकाला जाता है. मंदिर के शिखर का कलश और छत्र तक सब कुछ सोने का है. एक भक्त ने संगत कर मंदिर में 35 किलो सोने का छत्र लगवाया था. 1965 में मंदिर का निर्माण हुआ था. 1994 में यहां पहला स्वर्ण कलश संत गरीब दास ने संगत के सहयोग से चढ़ाया था. बाद में भक्तों के सहयोग से 32 स्वर्ण कलश लगाए गए. 2012 में मंदिर में 35 किलो का सोने का स्वर्ण दीपक चढ़ाया गया. इसमें अखंड ज्योति जलती है. दीपक में एक बार में पांच किलो घी भरा जाता है.
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